जिताती रहीं हार कर

jitati rahin haar kar

राही डूमरचीर

राही डूमरचीर

जिताती रहीं हार कर

राही डूमरचीर

और अधिकराही डूमरचीर

    जिसके होने से

    ज़िंदगी

    बचपन की तरह

    फुदकने लगती है

    वही अनजान शहर की

    सूनी गालियाँ हो जाता है

    जिसके आने से

    फिर से लौट आता है जादूगर

    वही बारहा कोशिश से

    आई रुलाई की तरह

    हो जाता है

    एक आदमी जो

    एक स्त्री से प्यार करता है

    बेइंतिहा प्यार करता है

    वह प्रेमी से

    ख़ालिस आदमी बन जाता है

    सारी समस्याएँ यहीं से शुरू हुईं

    आदमी ने स्त्री से प्यार करने का

    दावा किया

    दलील की तरह साबित की

    अपनी मोहब्बत

    उसके मुतमइन होने तक

    उसने सारी तरकीबें अपनाईं

    स्त्रियाँ हार कर इश्क़ में

    जिताती रहीं प्रेमियों को

    अनगिनत तोड़े गए भरोसों के बावजूद

    मौक़ा देती रहीं आदमियों को

    इस तरह

    सहभागिता का एक युग जो शुरू हो सकता था

    वह ताक़त के युग में बदल गया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राही डूमरचीर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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