सरिये

sariye

नवीन रांगियाल

और अधिकनवीन रांगियाल

    मैं देखता नहीं अब—

    पहले की तरह

    क्योंकि देखने के लिए फूल होने चाहिए आस-पास

    कुछ बादल,

    थोड़ी बारिशें हों

    और फिर दीवारों से फूटती हुईं कोंपलें भी नज़र आए कहीं

    खेत में उमगती फ़सलें हों

    पहाड़ हों दूर कहीं

    धीमे-धीमे घूमती पवनचक्कियाँ

    आती-जाती हुई रेलगाड़ियाँ हों

    जिन्हें देखकर तुम ख़ुद को विंडो सीट पर बैठा हुआ देखो

    या कम से कम

    उतना देखना तो बचा ही हो

    कि बच्चे अपनी पीठ पर बस्ते लादकर स्कूल जा रहे हों

    और वे वापस बेदाग़ लौट रहे हों घर

    क्यों देखना चाहिए तुम्हें

    अब जबकि तुम्हारी गलियों में

    कोई ग़ुब्बारे बेचने के लिए नहीं आता

    कोई कुल्फ़ी वाला घंटियाँ नहीं बजाता—

    ऊँघती हुई दुपहरों में

    चिट्ठी लेकर भी नहीं आता कोई

    तो फिर किसको आते हुए देखना चाहोगे तुम?

    उम्मीदें इस तरह चलकर नहीं आतीं

    दुनिया ऐसी ही नाउम्मीदी से चलती है

    आजकल देखना

    अंदर ही अंदर घुट जाना है—

    बंद कमरों में

    किवाड़ों के उस तरफ़

    किसी स्कूल की कक्षा में

    काँच के किसी केबिन में भी

    किसी देवता की पीठ या उसकी आँखों के सामने भी

    मुँह दबा दिए जाते हैं—कई बार

    वहाँ से घुटने की आवाज़ें आती है सिर्फ़

    जैसे कबूतर किसी अँधेरी गली की किसी इमारत पर घुटते रहते हैं

    लेकिन अब इन दिनों ज़रूरी नहीं रहा

    कि घुटने, घोटने और घुटकर मर जाने के लिए अँधेरा हो ही

    अब कहीं भी सड़क पर घुटकर मरा जा सकता है

    या मारा जा सकता है सरेआम—

    किसी रेलगाड़ी के डिब्बे में

    किसी चलती हुई बस में भी

    दिल्ली के लाल क़िले पर जलती हुई ढेरों मोमबत्तियों के बीच भी इज़्ज़त उछाली जा सकती है

    और यह सब मैं देख चुका हूँ असंख्य बार

    अक्सर

    यहाँ-वहाँ

    चलते-फिरते

    मैं ऐसे कबूतरों में तब्दील हो गया हूँ

    जो अब बंदूक़ों के धमाकों से भी ख़ौफ़ नहीं खाते

    बारूद की गंध से जी नहीं मचलता मेरा

    फाँसियों से भी मैंने डरना बंद कर दिया है

    मुझे बिल्कुल ख़ौफ़ नहीं होता

    जब तुम अख़बारों में मुझे चौराहे पर लटका देने की बात करते हो

    एक दिन मैं कारतूसों से भी डरना बंद कर दूँगा

    और उस दिन देखना तुम सब

    मैं किताबों में इस सभ्यता का सबसे बेहतरीन आदमी कहलाऊँगा

    मुझे उतनी फ़ुरसत नहीं

    कि लालक़िले पर लटकता हुआ किसी का दम उखड़ते देखने जाऊँ मैं

    ज़्यादातर वक़्त मैं अपनी आँखें बंद ही रखता हूँ

    टाँगों के बीच लटकते हुए मल खंभ को काट देने की भी फ़िक्र नहीं रही मुझे

    क्योंकि ठीक उसी तरह का एक 56 इंच का सीना मैं अपने ज़ेहन में भरकर भी चलता हूँ

    मैं जब चाहूँ जहाँ चाहूँ इस सीने को किसी लड़की की योनि में घुसेड़ सकता हूँ

    किसी नवजात की भी...

    किसी गर्भ में रखे गए भ्रूण का भी बालात्कार कर सकता हूँ मैं

    इस सीने को लकड़ी का ठूँठ बनाकर

    या फिर किसी लोहे की रॉड में तब्दील कर इस्तेमाल कर सकता हूँ

    किसी भी फूल की आत्मा में सुराख़ कर सकता हूँ मैं

    इसलिए अब मैं देखता नहीं—

    पहले की तरह

    मैं आदी हो चुका हूँ

    आँखें निकलती हुई देखने का

    और योनियों से ख़ून टपकते हुए देखने का

    अंतड़ियों को सड़क पर फैलते हुए देखने का

    जब ट्रकों में लोहे के सरिये भरकर ले जाए जाते हैं

    तब मैं समझ जाता हूँ कि ये सरिये

    लड़कियों के लिए ले जाए जा रहे हैं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवीन रांगियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए द्वारा चयनित

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