वर्जित समय में एक कविता

warjit samay mein ek kawita

रश्मि भारद्वाज

रश्मि भारद्वाज

वर्जित समय में एक कविता

रश्मि भारद्वाज

और अधिकरश्मि भारद्वाज

    मृत्यु के पास आने के सौ दरवाज़े थे

    हमारे पास उससे बच सकने के लिए

    एक भी नहीं

    इस बार वह दबे पाँव नहीं आई थी

    उसने शान से अपने आने की मुनादी करवाई थी

    उसकी तीखी गंध हवा में फैली थी

    हम गंधहीन हो चुके थे

    जीवन का स्वाद उसने पहले ही हमसे छीन लिया था

    इस बार हमें ले जाने से पहले ही

    वह हमारे जीवित होने के सभी सबूत नष्ट कर चुकी थी

    हमारे पास इतना भी समय शेष नहीं था

    कि हम निबटा लेते बचे रह गए काम

    ठीक से विदा कह पाते

    हथेलियों में भर लेते पीछे छूट रहे

    हाथों का स्पर्श

    हम साँस-साँस की मोहलत माँगते रहे

    और आख़िरी साँस तक

    उनके प्रेम के लिए वर्जित ही रहे

    जो कभी प्राणवायु बन हमारी धमनियों में तैरते थे

    हमारे शेष रह गए शरीर को भी

    परित्यक्त ही रह जाना था

    किसी पवित्र नदी में फेंक दिया जाना था

    या अस्पताल के बाहर कूड़े के ढेर पर

    हमारी अंतिम यात्रा में इस बार शामिल था

    सिर्फ़ हमारा खोखला शरीर

    और उस पर एकाकी अट्टहास करता

    एक

    निर्दयी वायरस

    मृत्यु भी चकित थी

    इससे पहले कभी

    वह इतनी वंचित नहीं लौटी थी

    स्रोत :
    • रचनाकार : रश्मि भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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