उसका भविष्य

uska bhawishya

राजीव सभरवाल

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उसका भविष्य

राजीव सभरवाल

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    कँटीली बाड़, ईटों के ढेर, पीपल के पेड़

    और बदरंग दीवार के बीच खड़ा वह

    बस्ता लटकाए, मामूली-सा लड़का

    क़द होगा क़रीब चार फुट

    खाने का डब्बा दोनों हाथों से पकड़कर मुँह पर फेर रहा था

    जैसे अभी भी कुछ मिल रहा हो उससे

    पूरी खुली हुई, शांत, आश्वस्त आँखें

    थोड़ी अधीरता के साथ

    एक ख़ास दिशा में बार-बार देखती हुई

    खड़ा वह, निश्चल, हवा-धूप में

    स्कूल की छुट्टी हो चुकी है

    अब उसे इंतज़ार है

    माँ का? किसका?

    अकेले घर नहीं जा सकता वह,

    माँ को देर हो जाए, तो भी।

    क्या कोई कभी उसे लेने आएगा?

    कुछ भी हो, पहुँचेगा तो वह नहीं कहीं

    अगर अपवाद हो (आजकल अपवाद कहाँ होते हैं)

    घूमता रहेगा, यहाँ से वहाँ जाएगा

    जाएगा, आएगा, रुकेगा, इंतज़ार करेगा, बढ़ेगा

    बतियाएगा, खड़ा रहेगा यूँ ही अकेले

    उम्र भर ख़ुद को धोखा देते हुए

    खाने का डब्बा मुँह पर फेरते हुए

    ख़ास दिशाओं में बार-बार देखते हुए, बिताते हुए, जीवन

    कल की याद में, आज के ठहराव में, कल के इंतज़ार में

    क्या उसका भविष्य कभी उसे लेने आएगा?

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 40-41 (पृष्ठ 39)
    • संपादक : सोमदत्त
    • रचनाकार : राजीव सभरवाल

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