उम्मीद

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आनंद गुप्ता

आनंद गुप्ता

उम्मीद

आनंद गुप्ता

और अधिकआनंद गुप्ता

    आकाश में गहरी बेचैनी

    धरती की साँसें घुट रही हैं

    मेरा समय हाँफ रहा है

    अँधेरा इतना गहरा

    कि ख़ुद को ढूँढ़ना तक मुश्किल

    आँखें देखने से ज़्यादा अब

    आँसू बहाने के काम रही है

    हुगली की जलधारा भी आजकल

    बेहद उदास बहती नज़र आती है

    मछलियों के छपाक से

    कभी-कभी टूटता है नदी का सन्नाटा

    नौकाओं का अकेलापन

    नदी के सीने से होते हुए

    मेरे भीतर तक उतर आया है

    सैकड़ों उदास करने वाली ख़बरों के बीच

    उम्मीद की कोई टिमटिमाती हल्की लौ भी

    इस वक़्त सुकून देती है

    जैसे मेरे बाग़ीचे के बीच

    सिपाही बुलबुल के घोंसले में

    आकार ले रहे दो जीवन

    बॉलकनी में सुबह सुबह

    घोंसले से सिर निकाले

    नन्हीं गौरयों की धीमी चहचहाट

    एडिनियम की ठूँठ से

    सिर निकालते सैकड़ों पत्ते

    मेरे मन पर भी उग आते हैं

    पिछले साल की उदासी में

    सूखते हुए पौधों ने जो बीज छोड़े थे

    मिट्टी के कपाट खोल नन्हें अंकुर

    बाग़ीचे में उम्मीद की नई रौशनी बनकर खिल आए हैं

    सामूहिक हत्याओं का दौर बदस्तूर जारी है

    हत्यारे दड़बों में जा छुपे हैं

    मेरा समय तड़प रहा है

    साँसें उखड़ती जा रही हैं

    मैंने उम्मीद की रस्सी

    कस कर पकड़ रखी है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद गुप्ता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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