सब कुछ अगर झूठ हो तो भी बचा रहता है थोड़ा-सा सच

sab kuch agar jhooth ho to bhi bacha rahta hai thoDa sa sach

आदित्य शुक्ल

आदित्य शुक्ल

सब कुछ अगर झूठ हो तो भी बचा रहता है थोड़ा-सा सच

आदित्य शुक्ल

और अधिकआदित्य शुक्ल

    सब कुछ अगर झूठ हो तो भी बचा रहता है थोड़ा-सा सच

    सभी अगर भूल जाएँ तो भी कभी-कभी करता है कोई याद

    कहीं कोई जगह हो तो भी बची रहती है थोड़ी जगह

    कुछ भी समझ आए तो भी बनते हैं भाषाबंध

    पुकारते हैं जो आपको बिना बताए

    कहाँ चली जाती होंगी उनकी ध्वनियाँ?

    यहाँ नदी तट पर बहुत सी लावारिस नाव हैं जिनसे रिसता है पानी

    जिन्हें लेकर कोई नहीं उतरेगा नदी में

    आँखे बंद करके कोई सपना भी देख सकता है और सुबक भी सकता है।

    कोई सुबह जलाता है जब रसोई में चूल्हा तो ईंधन में झोंकता है अपने सपने

    सपनों की आँच पर पकी रोटी फिर थोड़ी तो मीठी होगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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