इस कोरोना-समय में

is korona samay mein

मदन कश्यप

मदन कश्यप

इस कोरोना-समय में

मदन कश्यप

और अधिकमदन कश्यप

    फ़ुर्सत में हूँ

    इसीलिए कुछ कर नहीं पा रहा हूँ

    समय बहुत ज़्यादा हो तो

    किसी काम का नहीं होता

    बिल्कुल ज़्यादा ईश्वर की तरह

    और देखो ना

    जो लोग ईश्वर-ईश्वर चिल्ला रहे थे

    अब कोरोना-कोरोना चिल्ला रहे हैं

    नहीं कहूँगा मृत्यु से डरता नहीं था

    लेकिन अब तो यह बिल्कुल नहीं डरा पा रही है

    पहले सोचता था वह बर्छे तरह आएगी

    चुभेगी

    और सब कुछ ख़त्म कर देगी

    लेकिन वह तो नर्म कंबल की तरह

    बाहर-भीतर लिपट गई है

    फिर तो, इसके मसृण स्पर्श के साथ

    आराम से मरने तक जी सकता हूँ

    चेहरे और पीठ पर रैश

    जैसा कुछ हो रहा है

    छोटी-छोटी फुंसियाँ काले तिलों में बदलती जा रही हैं

    मरने से पहले

    अपने होमियोपैथिक चिकित्सक से मिल

    लेना चाहता हूँ

    युवा दिनों में ही कान की सर्जरी करानी पड़ी थी

    तब से कभी-कभी तेज़ खुजली होती है

    तो दो बूँद मुलिन ऑयल डाल देता हूँ

    जो पिछले कुछ महीनों से नहीं है

    मरने से पहले

    उसकी एक छोटी शीशी

    ख़रीद लाना चाहता हूँ

    बाल इतने बड़े और बेहतरीन हो गए हैं

    कि आईने के सामने जाने से डरता हूँ

    मरने से पहले

    इन्हें अच्छे से कटा लेना चाहता हूँ

    यात्रा से ढेर सारे गंदे कपड़े लेकर लौटा था

    उन्हें धो तो दिया

    अब मरने से पहले

    इस्तरी कराकर सलीक़े से

    रख देना चाहता हूँ

    तमाम उच्छिन्न सुकुमार इच्छाओं को समेटकर

    भर लेना चाहता हूँ आत्मा के उजाड़ में

    ताकि मरने से पहले

    हरी-भरी हो जाए देह की धरती

    भूख से बहुत जन मर रहे हैं

    और जो बचने के लिए भाग रहे हैं

    पाँव-पैदल

    अपने गाँव की ओर

    उनमें से भी कुछ थकान से मर जा रहे हैं

    यह कैसा समय है कि लोग

    जीवन बचाने के लिए जीवन गँवा रहे हैं

    जिसने आत्महत्या से पहले

    मोबाइल बेचकर परिवार के लिए खाना ख़रीदा

    और बच्चे को गर्मी से बचाने के लिए एक

    पुराना पंखा भी

    उसकी मौत में जीवन का कितना बड़ा

    सपना शामिल है

    उसे वे भला क्या समझेंगे

    जो स्वप्न और हवस का अंतर नहीं जानते

    अन्न और दवा के अभाव में मरते लोग

    वे चुपचाप तो नहीं मरेंगे

    मैं मरने से पहले

    उन्हें जीवन के पक्ष में खड़ा होता देखना चाहता हूँ

    नई सदी में ताक़तवर और हृष्ट-पुष्ट हो चुका ईश्वर

    अचानक कितना निरीह दिखने लगा है

    इस कोरोना-समय में

    मैं मरने से पहले

    ईश्वर को मरता हुआ देखना चाहता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मदन कश्यप

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