विचारों का विस्तार इस तरह हुआ—

wicharon ka wistar is tarah hua—

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल

विचारों का विस्तार इस तरह हुआ—

विनोद कुमार शुक्ल

और अधिकविनोद कुमार शुक्ल

    विचारों का विस्तार इस तरह हुआ—

    जिस दिशा में

    एक मरियल आदमी

    मुरम खोद रहा

    दिन भर से धूप में

    पुरानी ज़ंग खाई

    लोहे जैसी मज़बूत

    मुरमी तपती ज़मीन से

    उस आदमी के साथ

    एक लड़का

    आबादी जैसा भूखा

    उघारा दुबला

    खुदी हुई मुरम को जो

    घमेले में भरकर

    बैलगाड़ी में डाल रहा

    उन दोनों तक पहुँचने के लिए

    पेड़ की छाया

    शाम-शाम को बहुत चाहकर

    उनकी दिशा में

    कुछ लंबी होकर रह गई।

    बुलबुल तो गाने वाला

    भूरे रंग का फूल

    खंजन मैना भी पेड़ में

    इसीलिए तो उड़ गई।

    दु:ख हुआ हरे-भरे पेड़ से

    कि पत्तियाँ सैकड़ों

    आकर बैठ गई होंगी झुंड में

    चिड़ियों के साथ

    हरि पत्तियों का बसेरा

    वह जो अब इसलिए पेड़ हरा

    एक पत्ती एक चिड़िया लगी

    पीली पत्ती

    जो पेड़ से अलग हुई हवा में

    गिर पड़ी चिड़िया पीली

    एक पत्ती गई

    एक पत्ती की छाया गई।

    पेड़ में स्थिर बैठी चिड़िया

    पेड़ के हिस्से के समान

    और पेड़ पर बैठने के लिए

    कहीं दूर उड़ती चिड़िया भी

    पेड़ का उगा हुआ विस्तार

    हवा में उड़ता

    सीटी-सी बजा

    ओझल हुआ।

    —एक चिड़िया गई

    एक चिड़िया की छाया गई

    पेड़ की छाया

    टुकड़े-टुकड़े

    चिड़ियों की छाया होकर

    चली गई चिड़ियों के साथ।

    उड़कर चली जाएगी हरियाली

    हरी पत्तियों का झुंड

    हरी झाड़ी

    असंख्य बीज

    चिड़ियों के झुंड के साथ

    भरी नदी के किनारे

    जंगलों में,

    बाक़ी होगा ठूँठ

    इस चटियल मुरमी मैदान पर

    हरियाली गई

    हरियाली की छाया गई।

    दृश्य धुँधले हैं

    धुँधलके में,

    एक-एक कर नहीं

    एक साथ धीरे-धीरे

    जो दिख रहा है

    वह धुँधला

    जो ओझल

    धुँधलके में ओझल है।

    चिड़िया बहुत छोटी

    धुँधला आकाश भी

    धुँधला एक तारा

    धुँधलके में शाम का,

    पर दूर से आती हुई

    ओझल बैलगाड़ी के

    बैलों की घंटी की आवाज़

    कहाँ धुँधली

    इसीलिए तो

    एकबारगी दिखने वाली

    शाम के तारे पर दृष्टि गई

    कि घंटी वही तारा है

    धुँधले आसमान के गले में काँसे की,

    पर जितना बड़ा गला आसमान का

    उस हिसाब से

    घंटी छोटी है

    चंद्रमा ठीक है।

    आसमान छुट्टा

    पता नहीं किसने छोड़ा

    जुगाली करता हुआ पसरा

    सारी दुनिया की हरियाली में

    मुँह मार सकने लायक़

    भारी भरकम

    सारी फ़सलें

    सारे जंगल

    उसकी तरफ़ उन्मुख

    वह धीरे-धीरे आता हुआ

    ज़मीन की तरफ!!!

    अगर जहाँ का तहाँ

    तो बँधा हुआ खूँटे में है,

    जुतने के लिए कभी

    मुरम खोदने वाले की

    बैलगाड़ी में

    और यदि रहा होगा

    तो शायद जुत गया होगा

    जोड़ी के लिए

    दूसरा आसमान भी

    साथ होगा।

    एकदम सन्नाटे में

    उभरकर

    स्पष्ट

    बैलगाड़ी के आने की आवाज़ का

    इस तरह विस्तार हुआ

    —एक अकेला पेड़

    पथरीले मैदान पर

    निपट अकेला होता है

    अंकुर से होकर

    सूख जाने तक

    उसी जगह

    वहीं हिलता-डुलता

    पिंजड़े में एक हरा तोता जैसा

    दो पेड़

    ज़्यादा से ज़्यादा

    पिंजड़े में

    जोड़े जैसे होंगे।

    —सब तरफ़ जाने के लिए

    पेड़ का क़दम अगला

    एक दूसरा पेड़ ही होगा

    एक पेड़ का

    आगे बढ़ते जाने का मतलब

    सिलसिला पेड़ों का

    संगठन की हरियाली का सुख।

    —पहाड़ जैसा

    स्थाई

    रुका हुआ

    बढ़ जाता है

    दीवाल की तरह

    श्रेणियों में संगठित,

    —सतपुड़ा की श्रेणी

    विंध्याचल

    संगठित हों हम भी

    पर नहीं छोड़नी हमको

    ख़ैबर की घाटी

    ख़ाली कोई जगह,

    हिमालय से बेहतर।

    —बाहर यदि कहीं

    धूप में

    टँगा तोते का पिंजरा

    तब भी पिंजड़े के अंदर होता है

    ऊपर से

    पिंजड़े की छाया के अंदर

    तोते की छाया होगी

    पिंजरे की छाया में

    एक कटोरी की छाया

    मिर्ची की छाया

    अधखाई होगी।

    बैलगाड़ी के आने की आवाज़ का

    और विस्तार

    हरे-भरे पेड़ को

    हरा-भरा पेड़ सोचने का

    अभ्यास होना ज़रूरी है

    पेड़ दिख रहा है

    धुँधलके में

    पर हरा भरा है

    रात में भी हरा-भरा होगा

    हरियाली के विश्वास का विस्तार

    नन्ही चिड़िया से होगा—

    एक पेड़ से दूसरे पेड़

    इस मुहल्ले उस मुहल्ले

    एक छोर से

    अंतिम छोर

    बिजली के तार

    टेलीफ़ोन के खंबे

    कुएँ की मुँडेर

    रहट

    इस तरफ़

    उस तरफ़

    कारख़ाने दफ़्तर

    गौरय्या घर-घर

    आने वाली बैलगाड़ी के

    पहिए की यह घरर-घरर आवाज़।

    मेरा विचार!!

    भूकंप के पहले

    ज़मीन के अंदर

    दबी हुई गड़गड़ाहट का शक

    ज़मीन में धमक

    ज़मीन काँपती हुई कि

    यह कोई और बैलगाड़ी है!!

    मुरम भरकर ले जाने वाली नहीं

    पर है

    मुरम खोदने वाले की

    जिसकी आवाज़ से

    भयानक लू में

    ठंडी लहर चली

    नमी और

    हरियाली की गंध

    नदियों, खेतों

    और ख़ुशहाल आबादी वाली

    हज़ारों मील के

    दृश्य के

    एक साथ उभरने की आवाज़

    बहुत ज़ोर की

    कहीं बारिश के अंदर से गुज़र

    भीगी-भीगी

    ठंडी हवा इधर—

    उस बारिश की

    पहुँची यहाँ ख़बर,

    हवा में उड़ता

    मीलों दूर भविष्य से

    आया जैसा

    एक बूँद पानी चेहरे पर

    चेहरे पर पूरे पानी का अनुभव,

    मेरे पते पर

    एक बूँद

    पूरा वातावरण जिसमें

    पोस्टकार्ड

    ठंडी हवाओं का

    बहुत दिन बाद मिला

    आने वाली सबकी कुशलता

    और अनगिनत

    अच्छे समाचारों का

    आभास देने वाला

    कोई संकेत अक्षर, संबंध अक्षर—

    बारिश की एक बूँद।

    चार-आठ बूँद पड़ते ही

    मैंने सोच लिया

    एक वाक्य

    —अच्छा समय

    दूसरे वाक्य फिर—

    मिल-जुलकर ख़ुश बहुत।

    कल की थोड़ी बेफ़िक्री

    मौसम इतना अच्छा कि

    खिलखिलाता लड़का अढ़ाई साल का

    नंग-धडंग दौड़ता

    निकल आया घर से बाहर,

    पीछे-पीछे

    हाथ में चड्डी लिए

    दौड़ती पत्नी आई

    मुझसे शिकायत करती बेटे की

    सुनकर मैं

    बेटे के पीछे दौड़ा

    पर जान-बूझकर

    धीरे-धीरे

    ताकि कुछ देर उसे

    आगे तक

    और दौड़ने दूँ

    उसके पीछे धीरे-धीरे

    मैं दौड़ूँ पत्नी भी दौड़े—

    बुढ़ापे में बेटे के पीछे

    दौड़ नहीं पाएँगे

    पर जहाँ वह होगा

    साथ वहाँ होंगे आगे-आगे

    मौसम इतना अच्छा।

    इसी तरह बूँदा-बाँदी

    कुछ देर मैं लिखता रहा!

    कुछ देर मैं लिखता रहूँ

    —आने वाली बैलगाड़ी में

    जुते होंगे

    अड़ियल बैल से बुरे दिन

    मज़बूत पुट्ठे के

    भारी सींग

    तेल में चमकते

    काले बैल

    काले दिन

    पसीने से भीगे

    सुमेला तोड़ने की कोशिश

    गाड़ी उलटा देने की फ़िराक़

    पर काबू में होंगे

    हाँकता होगा

    मुरम खोदने वाला

    और खड़ा होगा बाज़ू में लड़का

    ललकारते हुए बैलों को

    ताक़त से पूँछ मरोड़

    ''हई! हई! बईला सम्हल

    गड़बड़ करने से डर

    जल्दी चल

    आगे बढ़।’'

    मज़बूत विशाल संगठन की ताक़त से

    धीमे-धीमे

    बढ़ती हुई बैलगाड़ी

    परंतु भविष्य के

    अच्छे समय को लादकर

    पहुँचने के लिए वाली गति।

    लदा होगा

    टूट-फूटकर पहाड़ वह

    गाड़ी के एक कोने में,

    जो ज़िंदगी के रास्ते में अड़ा है

    रास्ता जिससे

    मात्र कुछ क़दम चारों तरफ़,

    रास्ता एक कमरा जैसा

    बल्कि गुफा जैसा

    चट्टानों से बंद।

    टूटने से पहाड़ के

    निकल बाहर आया होगा

    पहाड़ जैसै वज़न से

    सैकड़ों साल का पिछड़ा

    दबा हुआ ग़रीब

    छोड़कर पीछे

    अपनी पुरातत्त्व हुई ग़रीबी

    सारे उसके अवशेष

    खंडित पैर

    टूटी नाक

    टूटी भुजा

    बचा हुआ धड़—

    पेट के साथ

    शामिल होते

    बारिश की दुनिया में

    अपनी मज़बूत भुजाओं से

    ताक़तवर कंधे पर

    लेकर हल

    मेड़ों से उतर

    खेतों पर।

    और बैलगाड़ी में होंगे

    हँसते अपने सब मुस्काते

    ग़रीब बुलबुल

    ग़रीब खंजन मैना

    ग़रीब गौरय्या

    औरत बच्चे बूढ़े।

    एक बच्चा जो

    बैठा होगा

    टूटे पहाड़ के ढेर की चोटी पर

    पूछेगा दादा से—

    पहाड़ को फेंक क्यों नहीं देते

    गाड़ी से नीचे

    मुरम की खदानों में?

    '‘अरे! नहीं!!’' दादा बोलेंगे—

    ''रास्ते में

    जगह-जगह

    आदमियों की उत्सुक भीड़ मिलेगी

    जिस ख़तरनाक ऊँचाई से

    डरते थे

    उसको मरा हुआ

    टूटा-फूटा

    देख लेने की

    उसमें ललक होगी।''

    सुनकर सब बच्चे

    ख़ुश होकर ताली बजाते

    दौड़ पड़ेंगे खेलने

    पहाड़ के टूटने से

    फूट पड़े सोते और झरनों में।

    गूँजी तब विचारों के विस्तार में

    गाने की आवाज़ गंभीर

    मुरम खोदने वाले की भर्राई मोटी

    लड़के की मधुर मीठी

    उस आवाज़ का मैं

    इस तरफ़ विस्तार हुआ

    और गाने लगा

    ज़मीन की स्थिरता के संयम से

    भविष्य की ख़ुशहाली की साँसों को खींचकर

    आसमान की ऊँचाई को

    ध्यान में रख

    मुट्ठा भींचे

    धीरे-धीरे

    ''निकल पड़े बाहर

    बेघर के बंद

    खिड़की दरवाज़े से

    झुग्गी-झोपड़ी

    गटर नाली से,

    दया और माँगे हुए वक़्त से

    बाहर कूदकर

    छीन लें अपना वक़्त

    अपने कारख़ाने बग़ीचे

    अपने घर

    अपनी घास

    तिनके तक

    निकल पड़ें शामिल होने

    उनमें

    जो इकट्ठे हैं

    नदी को साथ लाने

    चटियल मुरमी मैदान पर।''

    जल्दी ऐसी कि—

    ख़ुशबू बौर की पहले आई

    अमराई बाद में होने के लिए

    साथियों की ख़बर पहले आई

    बाद में साथी पहुँचने के लिए,

    अच्छे भविष्य का विश्वास पहले

    अच्छा भविष्य बाद में होने के लिए

    काम करने की शुरुआत पहले

    काम ख़त्म करने के लिए।

    बुलबुल तो

    गाने वाला

    भूरे रंग का फूल

    खंजन मैना भी—

    इस पेड़ उस पेड़।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता से लंबी कविता (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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