हलफ़नामा

halafanam

नाज़िश अंसारी

नाज़िश अंसारी

हलफ़नामा

नाज़िश अंसारी

और अधिकनाज़िश अंसारी

    तुमने खोया होगा मुझे

    मैंने बचाया है तुम्हारे होने को

    बच्चों के नामों में नहीं

    उन्हें सुनाई गई कहानियों में भी नहीं

    (यू-ट्यूब सुनाता है उन्हें मुझसे बेहतर)

    आदर्श प्रेमी के सटीक मानकों में होकर भी नहीं

    मैंने बचाया है तुम्हें

    अचानक उचटी मेरी अभी-अभी लगी नींद में

    फ़िज़ूल करवट पलटती पीठ में

    कभी पढ़ी नहीं गई तस्बीह में

    और सबसे ज़्यादा

    डायरी के तमाम ख़ाली सफ़हों पर

    जहाँ सिर्फ़ तारीख़ें और वक़्त दर्ज हुए

    (जानते ही होगे अमूमन रात का

    तीसरा पहर था वह)

    मैनें छुपाया है तुम्हें

    पीरियड क्रंप में

    लेबर पेन में

    स्ट्रेच मार्क्स में भी

    उन जोड़ी भर हथेलियों में बेतरह

    जो नवजात की थपकी में अकेली थी

    मैनें छुपाया है तुम्हें

    डिटरजेंट छुई कटी उँगली की ख़रख़राहट में

    फूटे छाले की छरछराहट में

    ग़ुस्से में पटके बरतनों की झनझनाहट में

    उस बुदबुदाहट में जो चीख़ का पर्यायवाची थी

    तुम छूट कर भी कहाँ छूटे मुझसे

    छोड़ कर भी बचा ही रही हूँ तुम्हें कबसे

    कुछ बेदिली कुछ आज़िज़ी से

    तुम चाहो तो ख़ारिज कर दो

    मेरी ये सारी स्वीकारोक्तियाँ

    दरअस्ल, माँ बन चुकी तमाम स्थिर प्रेमिकाओं का

    हलफ़नामा भर है यह

    नहीं कोई कविता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नाज़िश अंसारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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