ताक़तवर आदमी
जब ताक़तवर आदमी ने कहा
कि उसे और भी ताक़त चाहिए
तो मुझे अपनी दुर्बल भंगुर देह दिखाई दी
जो शाम होते-होते थकान से चूर हो जाती थी और आराम चाहती थी
जब ताक़तवर आदमी ने कहा कि वह ग़रीब माँ का बेटा पैदा हुआ
और यहाँ तक पहुँच गया
तो मुझे याद आई वह मेरी माँ जो अब दुनिया में नहीं है
जिसके योग्य बनने में मेरी पूरी उम्र निकल गई
जब ताक़तवर आदमी ने कहा कि तमाम लोग उससे बेहद ख़ुश हैं
तो मुझे हवा में बहुत से चेहरे तैरते हुए दिखाई दिए
जो लगता था कहीं न कही मुझसे रूठे हुए हैं
और मेरी किसी ग़लती की ओर इशारा कर रहे हैं
जब ताक़तवर आदमी ने लगभग रोते हुए कहा
कि उसने देश के लिए घर त्याग दिया शादी नहीं की
तो मैंने सोचा मैं कितना ख़ुशनसीब था
कि रात को लौटने के लिए मुझे एक जगह नसीब हुई
एक भली-सी पत्नी मिली
जिसने अपने प्रेम के एवज़ में मुझसे कुछ नहीं चाहा
जब ताक़तवर आदमी ने कहा
कि उसे देश के शत्रुओं से घृणा है
और उनमें से बहुत से लोग देश के भीतर ही छिपे हुए है
तो मुझे गहरी चिंता हुई
कि कहीं मनुष्य के प्रति मेरे भीतर प्रेम घटने न लग जाए
जब ताक़तवर आदमी ने परेशान होकर कहा
कि बहुत से लोग मेरी जान के पीछे पड़े हैं
वे मुझे मार देना चाहते हैं
तो मैंने अपने मामूली से अस्तित्व के बारे में सोचा
जिसे सँवारने में कितने ही हाथों ने मदद की
जब ताक़तवर आदमी ने एक रात संदेश प्रसारित किया
कि वह अभी कई साल ताक़तवर बने रहना चाहता है
तो मैंने सुबह उठकर किसी अज्ञात से प्रार्थना की
बस आज के दिन बचा रहे मेरा यह धुँधला-सा जीवन।
- रचनाकार : मंगलेश डबराल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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