हमारे अँधेरे

hamare andhere

स्वाति मेलकानी

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हमारे अँधेरे

स्वाति मेलकानी

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    एक ऐसा बिंदु है

    जहाँ हम दोनों पृथक हो जाते हैं

    हमारी इस पृथकता से

    उत्पन्न बिछोह

    हमारे अँधेरों को निर्वस्त्र करता

    हमें भयभीत करता है

    हम डरते हैं अपने भीतर

    पर बाहर नहीं आते

    हमने कई रंग खोए हैं

    हमसे कई रूप छूटे हैं

    हम जीवन भर युद्धरत रहे

    अपने अपने अँधेरों से

    अपनी पृथकताओं का

    हमने कोई उत्सव नहीं मनाया

    हमने एक दूसरे को

    अपने अँधेरे पहनाए

    हमने अँधेरे ओढ़े

    हमने अँधेरे बिछाए

    अँधेरों में हम

    बल्लियों से टकराए

    हमें ठोकरें लगीं

    हम चीख़े-चिल्लाए

    हमने वह सब किया

    जो अपरिहार्य था

    कि अँधेरा बना रहे

    एक दिन रात हुई

    और अँधेरे में सोकर

    हम उठ नहीं पाए

    शायद हम निकल चुके थे

    अपने अँधेरे की अंतिम यात्रा पर

    इस बीच हमें

    दीप जलाने का

    विचार नहीं आया

    हम सूरज से अनभिज्ञ रहे

    हम स्वयं में स्थितप्रज्ञ रहे

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्वाति मेलकानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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