घर का रास्ता

ghar ka rasta

स्वाति मेलकानी

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घर का रास्ता

स्वाति मेलकानी

और अधिकस्वाति मेलकानी

    कुछ दिनों के लिए

    घर का रास्ता

    बदल जाता

    तो बेहतर था

    इस रास्ते पर

    रोज़ चलकर

    लगभग सब कुछ जान लिया है

    जो घट सकता है

    आने वाले कुछ सालों में

    रास्ते का

    हर पेड़

    यथावत खड़ा है

    पुराने पत्थर ढहे हैं

    कोई नया जुड़ आया है

    किनारों की दीवारें भी

    अपनी जगहों पर चिपकी

    ऊबने लगी हैं...

    नदी ख़ामोश होकर बह रही है

    और किनारे बसे लोग

    किसी से वास्ता रखकर

    अपने-अपने कामों में

    व्यस्त हैं

    रास्ते पर पड़ता

    हर क़दम

    एक गहरी ऊब से

    भारी होकर

    ज़मीन में धँस जाता है

    रास्ता कहीं नहीं पहुँचता

    और लौटकर

    घर वापस जाता है...

    फ़िलहाल

    और कुछ

    बदलता नहीं दिखता

    कुछ दिनों के लिए

    घर का रास्ता

    बदल जाता

    तो बेहतर था

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्वाति मेलकानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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