मैं इन दिनों बहुत डरा हुआ हूँ

main in dinon bahut Dara hua hoon

बहादुर पटेल

बहादुर पटेल

मैं इन दिनों बहुत डरा हुआ हूँ

बहादुर पटेल

और अधिकबहादुर पटेल

    डरा हुआ हूँ मैं इन दिनों

    यह डर कविता लिखने से पहले का है

    इसे लिखते-लिखते हो सकता है मेरा क़त्ल

    और कविता रह जाए अधूरी

    या ऐसा भी हो कि इसे लिखूँ

    और मारा जाऊँ

    यह भी हो सकता है कि

    कविता को सुसाइड नोट में तब्दील कर दिया जाए

    आज तक जितने भी राष्ट्रों के सुसाइड नोट हैं

    मेरा यह डर इसलिए भी है कि

    वे इस वाक़ये को देशभक्ति या बलिदान की

    शक्ल में करेंगे पेश

    उनकी उँगलियाँ कटी होंगी सिर्फ़

    और वे लाशों का ढेर लगा देंगे

    गाई जाएँगी विरुदावलियाँ

    इस ख़ौफ़नाक समय से आते हैं निकलकर

    डरावनी लिपियों से गुदे हाथ

    जो दबाते हैं गला

    मेरे डर का रंग है गाढ़ा

    जिसको खुरचते हैं उनके आदिम नाख़ून

    मैं रोने को होता हूँ

    यह रोना ही मेरी कविता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बूँदों के बीच प्यास (पृष्ठ 64)
    • रचनाकार : बहादुर पटेल
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

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