दस स्पोक जरथुस्त्रा : द्वितीय

das spoke jarthustra ha dwitiy

आसित आदित्य

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दस स्पोक जरथुस्त्रा : द्वितीय

आसित आदित्य

और अधिकआसित आदित्य

    दूर देस से आया था वह...

    देखा था बहुत कुछ

    मसलन एक रोमन सम्राट द्वारा

    अपनी दासियों के वक्षों में पिन चुभोने से लेकर

    सनकियों द्वारा लाशों का बलात्कार करते

    साक्षी था ओडीपस के सफ़र का―

    बाप की हत्या से लेकर माँ की योनि चूमने तक

    और एक रंडी की उस पहली रात का भी

    जब चौदह बरस की वह बच्ची

    कुटिलता से मुस्काई थी अपने ख़ून रिसते गुप्तांग पर

    रेगिस्तान में बसे मरे सैनिकों के लहू की दुर्गंध

    उसके नथुनों में समाई थी

    उसकी आँखों में तैरते थे

    सैनिकों के कटे हाथ-पाँव के टीले

    (ताकि पूरे जिस्म को गैंगरीन से बचाया जा सके)

    गिलोटिन के नीचे छटपटाते जिस्म पर

    उसकी आत्मा के नाखूनों की ममतामयी खरोंच थी

    डूब मरी चार बच्चियों की

    मछलियों द्वारा नोच ली गईं आँखों में आँसू थे उसके

    जिन्हें फेंक आई थी उनकी माँ नदी में एक सुबह

    ज़िंदगी के कठोर से कठोर सबक़

    उसे आत्मसात थे

    उसकी कॉपियों में दर्ज थे

    मानवता के क्रूरतम इतिहास

    मानवों के बनैले व्यवहार

    मगर पूनम की रात

    अक्सर सिसक उठता था

    समंदर में ज्वार-भाटा ज्यों

    उसी ने मुझे बताया

    कि आग और बर्फ़ के बीच

    है अवसाद की एक रेखा महीन

    कि ऊँचाई का पहला हासिल है अकेलापन

    कि पहाड़-सी ऊँची आत्मा

    खाई-सी गहरी भी होती है

    स्रोत :
    • रचनाकार : आसित आदित्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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