कवि के वर्तमान के बारे में वक्तव्य

kawi ke wartaman ke bare mein waktawy

सोमप्रभ

सोमप्रभ

कवि के वर्तमान के बारे में वक्तव्य

सोमप्रभ

और अधिकसोमप्रभ

    कवि जिस भीड़ घिरा है

    उसमें शहर के सबसे भ्रष्ट लोग हैं

    तमाम चापलूसों और मक्कारों को

    उसने ख़ुद ही किया है निमंत्रित

    या तो वह अपने अकेलेपन से ऊब गया है

    या डर गया है

    शायद, उसका धैर्य जवाब दे गया है

    या अपने कमरे की कुर्सी में पुठ्ठा टिकाए ही

    समूची पृथ्वी पर विचरण कर लेने

    और अंतरिक्ष में छलाँग लगा आने

    की कल्पनाएँ ही चुक गई हैं

    कुछ कुछ तो ज़रूर हुआ है कवि को

    वरना लेखन और एकांत ही जीवन की अंतिम इच्छाएँ थीं

    यहाँ तक कि उसने कह दिया था

    कि सरकार अगर किसी दिन छीन ले उसके नागरिक अधिकार

    तो भी शब्द और एकांत मेरे पास रहेगा

    और क़ैद मेरी, कोई क़ैद होगी

    जबकि दूर-दूर तक कोई ख़तरा नहीं था

    और यह भी उसने कहीं से पढ़ लिया था

    जिसे बार-बार वह दुहराता रहता था

    वैसे भी सरकारें पागल नहीं है

    इक्कीसवीं शताब्दी वैसे भी

    राजनैतिक धूर्तताओं और दमन के नए तरीक़ों का समय है

    सरकारें जानती हैं कि जब ऐसे ग़ैर मामूली काम

    वह सिर्फ़ पुरस्कार देकर कर सकती है

    तो सजा देकर क्यों करे।

    कवि के जीवन में

    सिर्फ़ बचे रह गए हैं वक्तव्य

    वह जितना भी शेखी मार सकता है

    सिर्फ़ कविता में ही मार सकता है

    उसके बाहर वह कुत्तों की भूँक से डरता है

    हरदम कौव्वों से घिरा रहता है

    और नैतिकता को सूक्तियों में बोलता है

    कि वह छापेख़ाने के काम सकें।

    चायख़ाने से लेकर पाख़ाने तक

    काव्य-गोष्ठी से लेकर शराबख़ाने तक

    हरदम ऐसे ही लोगों से घिरा रहता है कवि।

    उसके आस-पास

    जाने कहाँ से इतनी भीड़ भी इकठ्ठा हो गई है इन दिनों

    कि लगता है किसी के पास कोई काम नहीं बचा है अब

    पृथ्वी पर उनका जन्म सिर्फ़

    साहित्य रचने, गोष्ठियाँ करने,

    और वक़्त काटने के लिए ऐसी चकल्लस करने को हुआ है

    हर रोज़ मिल जाता है मुफ़्त का सभागार

    दीप-बाती जल जाती है

    गेंदा का फूल जाता है

    चाय और समोसा जाता है

    कभी-कभी मिठाइयाँ, पनीर-पकौड़े जाते हैं

    इस कारण बग़ल के दफ़्तरों से चले आते हैं

    कुछ और भुक्कड़ भी

    और सौ दफ़ा दुहरायी गई, महाउबाऊ पंक्तियाँ बोलने के लिए

    लग जाता है माइक

    कवि भी दौड़ा चला आता है

    और नामालूम किन-किन फ़ालतू बातों पर बोलता हुआ

    वक़्त काटता रहता है

    सभागार तालियों, धन्यवाद ज्ञापनों से तब भी गूँजता रहता है

    जबकि कोई कार्यक्रम आयोजित हो रहा हो।

    गेंदे का फूल और दीप-प्रज्ज्वलन ही कवि का भविष्य होगा

    ऐसा भूतकाल में कहाँ किसी ने उसके बारे में सोचा था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सोमप्रभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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