सिक्का

sikka

महेश आलोक

महेश आलोक

सिक्का

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    मैंने उसे सड़क पर देखा

    उसकी साँस पर लगातार हमला कर रही थी

    आदमी का ताज़ा गंध

    और वह परेशान था

    वह परेशान था और किसी को तलाश रहा था

    उसकी मदद करनी चाहिए मुझे लगा

    इसलिए उसके नज़दीक़ गया

    उसने मुझे घूरा

    ज़ाहिर है मेरी उपस्थिति उसे विचलित कर रही थी

    वह तलाश रहा था उसे जिसकी जेब से उछलकर

    वह गया था सड़क पर

    बाहर की हवा खाने के लिए

    हवा में सिक्के की महक फैली हुई थी

    और पूरा क्षितिज सिमटकर महक में तैर रहा था

    इस तथ्य से सिक्का अनभिज्ञ नहीं था

    इसलिए सशंकित था कि कहीं

    उड़ जाए क्षितिज में

    मैं अभी कुछ सोच ही रहा था कि

    ट्रक और बस और तिपहियों का रेला गुज़र गया

    उसके ऊपर से

    मैं सड़क की ईर्ष्या और चालाकी भाँप गया था

    और चकित था कि पृथ्वी भी

    इस खेल में शामिल है

    और अब मैं सड़क के किनारे था

    कि वह उठा और सीधे पहुँचा उस आदमी के सपने में

    जिसके दाहिने हाथ की गदोरी

    सुबह से चुनचुना रही थी

    तुरत लिया गया यह निर्णय

    एक ऐसा निर्णय था

    जो कवि लीलाधर जगूड़ी के इस वाक्य का

    समर्थन कर रहा था कि

    भय भी शक्ति देता है

    और इस समय

    सड़क और पृथ्वी और हवा और आदमी और सिक्के का

    सीधा अर्थ वही नहीं था

    जो उनके पैदा होने के समय था

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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