चमगादड़

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श्रीप्रकाश शुक्ल

और अधिकश्रीप्रकाश शुक्ल

    मैं एक चमगादड़ हूँ

    हज़ारों प्रजातियों में विकसित मेरा परिवार

    इस जगत का सबसे बड़ा समुदाय है

    कुछ मुझे पक्षी कहते हैं

    क्योंकि मैं उड़ सकता हूँ

    कुछ मुझे पशु कहते हैं

    क्योंकि मैं स्तनधारी हूँ

    कुछ मुझे लक्ष्मी कहते हैं

    क्योंकि दीपावली के अवसर पर

    मैं अक्सर धनधारी हूँ

    कुछ मुझे स्पर्शगंधी कहते हैं

    क्योंकि मैं हवाओं में तैर सकता हूँ

    और हर बुरे विषाणु में घुलकर

    उसे धुन सकता हूँ

    मैं अपवित्र ही सही,

    एक फ़र्ज़ अदा कर सकता हूँ

    सुनते हैं कि बनारस के 'बाबा' भी अपने सठियापे में

    कौए के बहाने कहीं लिख गए हैं कि मैं एक अवतार भी हूँ

    मैं दुनिया के सभी निंदकों का

    एक पपियाया हुआ निचोड़ हूँ!

    कुछ देशभक्त तो मुझे सभ्यता की समाप्ति का सूचक मानते हैं

    और इसलिए उनके लिए

    प्रकाश से दूर

    एक अंतहीन रात हूँ

    जहाँ भी हूँ

    उनके कूकर से फेंका हुआ

    भात हूँ!

    मैं दुनिया का सबसे शापित प्राणी

    भर दिन उलझा रहता हूँ पेड़ों की शिराओं में

    और टहनियों में उल्टा लटक कर

    पेड़ बाबा की तरह योग में लीन रहता हूँ

    जहाँ कभी-कभार कुछ लोग आकर ख़ुश होते हैं

    और अपनी मंगलकामना की इच्छा से

    मेरी पूजा भी करते हैं

    आख़िर मैं किससे कहूँ कि मैं भी इसी वसुधा का नागरिक हूँ

    जिसे एक देश के 'गीले बाज़ार' में ठोस दाम पर बेच दिया गया है

    जहाँ जबरिया मेरी गर्दन को

    एक प्रयोगशाला में डाल दिया गया है

    यह एक 'चीनी भूप' का क़िस्सा है

    जिसके लिए मैं महज़ सूप हूँ!

    जब मेरे चीख़ने, चिल्लाने, गुर्राने, बर्राने का कोई मतलब नहीं रहा

    यह जानते हुए भी कि साँस के साथ

    खाना और पाखाना के नाम पर एक ही छिद्र है

    मेरी नसों को नाथ दिया गया

    मैं एक क्रूर आततायी के नाख़ूनी पंजों से भाग निकला

    जहाँ दुनिया ने मेरे ऊपर ईनाम घोषित कर दिया

    क्या आपने कभी सोचा कि आख़िरकार

    यह मेरी भी तो धरा है

    मुझे भी तो इस पर जीने का हक़ है

    मैंने जब-जब जीने का हक़ माँगा

    आपने मुझे बुरी तरह क़ैद कर लिया

    एक निरपराध अपराधी की तरह मेरा मुँह बंद कर दिया

    और अपने चीरघर में मेरी हत्या की कोशिश की

    मानो मेरी ज़िंदगी का योग अब

    आपके लिए प्रयोग है!

    अब जब मैं आपकी इस वधशाला से भाग निकला हूँ

    आप मुझे हत्यारा कहते हैं

    जैसे मैं ही आपका संकट निकट हूँ

    अपनी यातना में एक वायरस विकट हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीप्रकाश शुक्ल
    • प्रकाशन : पहली बार

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