शोकनाच

shoknach

आर. चेतनक्रांति

और अधिकआर. चेतनक्रांति

     

    गुजरात में भूकंप के बाद

    गुजरात में भूकंप के दूसरे दिन
    भूकंप—जहाँ—आया नहीं—ऐसी ख़ैर मनाती दिल्ली में
    शाम हुए जब मैं दफ़्तर से निकलकर भाग रहा था
    मस्जिद में अज़ान हुई
    और मैंने वहाँ के बच गए ईश्वर से कहा, कि ईश्वर मुझे भय दे

    और संशय 
    कि मैं सावधान रहूँ
    और भागूँ जब धरती हिले
    जब धरती हिलती हुई धरती पर भागूँ

    और भागता हुआ उन दो-दो हाथ जगहों में नाचूँ
    जिन्हें मकान ने भागने के लिए छोड़ दिया था
    कि मकान में रहने वाला आदमी भागे 
    जब उसे मकान को छोड़कर भागने की ज़रूरत पड़े
    इन दो-दो हाथ जगहों में मकान की नाचती हुई मस्त दीवारों के बीच 
    नाचता हुआ भागूँ

    भूलने के लिए 
    कि जहाँ दीवारें मिलकर तिकोना बनाती थीं 
    कि जहाँ तिकोन पर तनकर हमारी छत 
    मकड़ी को जाले के लिए जगह देती थी
    कि वहाँ मकड़ी के जाले के पीछे हमारा भटका हुआ सुख रहता था
    उस जाले में उलझी हुई मकड़ी को घर में अकेला छोड़कर
    उस जाले में उलझी हुई, घर में अकेली मकड़ी को 
    भूलने के लिए 
    नाचता हुआ भागूँ

    और किसी को नहीं पुकारूँ 
    अटल बिहारी को भी नहीं, स्टीफ़ेन हॉकिंग को भी नहीं
    कि नीचे धरती, ऊपर आकाश और आकाश में और-और धरतियाँ 
    और जब वे सब हिलने लगें
    तब शरण के लिए नहीं
    मुक्त होने के लिए 
    ईश्वर से उधार लिए सपनों से; बूँद-बूँद संचित होती ख़ुशी से;
    कण-कण जमा होती हिम्मत से; पुर्ज़ा-पुर्ज़ा बनती
    ज़िंदगी की मशीन से; तार-तार जुड़ते मोह से
    टप-टप टपककर टापू बनती ऊब से 
    निकलने के लिए भागूँ
    और भागता हुआ नाचूँ

    कि जैसे कण पदार्थ के शरीर में—
    कि जैसे कण पदार्थ के शरीर को तोड़कर भागता हुआ नाचे;
    कि जैसे ईंट दीवार में—
    कि जैसे ईंट दीवार के शरीर को तोड़कर भागे
    और भागती हुई नाचे
    ऐसे मैं नाचते हुए घरों के शहर से निकलकर भागूँ
    अंतिम बार मरने के लिए नाचतीं ढेरों-ढेर साड़ियों के बीच 
    कुंतलों-टनों ख़ुश-खिलौनों के बीच 
    बदहवास नाचतीं इत्मीनानियों
    और भौंचक बल खाती अलसताओं के बीच 
    चकित चक्कर काटती अबुद्धियों और 
    सुन्न-सिटपिटाई बुद्धियों 
    और अज्ञानी पलकें पटपटाते मनुष्यों और 
    सबकुछ पहले से जानते-समझते कुत्तों के बीच

    और शोक की लीलाभूमि में खुलती काली गर्म दरार में
    तिरते हुए तिनकों के बीच तिनके की तरह तिरता हुआ नाचूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शोकनाच (पृष्ठ 83)
    • रचनाकार : आर. चेतनक्रांति
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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