सतह पर

satah par

शंकरानंद

शंकरानंद

सतह पर

शंकरानंद

और अधिकशंकरानंद

    जो सबसे कठोर है

    वह पत्थर है

    उसका भविष्य

    टुकड़ों में बिखरना हो सकता है

    इस भुरभुरी दुनिया में

    जहाँ एक हँसी भी

    असंख्य फूलों की तरह

    झरती है रात भर

    सुबह वह

    सबसे कठोर पैरों के नीचे

    बिछी मिलती है

    तब पता चलता है

    भरोसा करना

    किसी को रास्ता देना या

    किनारे होने जितना आसान नहीं

    पत्थर तो एक बहाना है

    असल बात है

    मनुष्य बनने की सरलता से इनकार करना

    जैसे ही कोई

    सामने आता है चींटी और दूब जितना मुलायम

    पैर नहीं रुकते

    आँखें पलकें झपका लेती हैं

    जघन्य अपराध इसी तरह हुआ करते हैं

    भीड़ या सुनसान में और

    चस्मदीद एक भी नहीं होता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शंकरानंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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