बाबा हमारे, नागार्जुन बाबा

baba hamare, nagarjun baba

शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह

बाबा हमारे, नागार्जुन बाबा

शमशेर बहादुर सिंह

और अधिकशमशेर बहादुर सिंह

    बाबा हमारे, अली बाबा

    नागार्जुन बाबा!!

    ‘खुल सीसेम!’ सबों के सामने—

    कहते—सबों के सामने—

    ख़ज़ानों की गुफाएँ

    सबों के लिए खुल पड़तीं,

    क्लासिक क्रांतिकारी ख़ज़ाने

    बाहदुर कविता के जीते-जागते,

    कभी हार मानने वाली जनता के

    बहादुर तराने

    और ज़िंदा फ़साने

    आँखों को चमकाने वाले,

    दिलों को गरमाने वाले,

    आज के इतिहास को

    छंद में समझाने वाले :

    —कभी धीमी गुनगुनाहटों में,

    कभी थिरकते व्यंग्य में,

    कभी करुण सन्नाटे में,

    तो कभी बिगुल बजाते

    और कभी चिमटा;

    कभी बच्चों को हँसाते,

    तो कभी जवानों को रिझाते,

    और बूढ़ों की आँखों में

    मस्ती लाते,

    —ऐसे ख़ज़ाने कविता की

    झोली में बरसाते

    हमारे बाबा अली बाबा

    नागार्जुन बाबा!!

    ***

    “काहे घबराऽऽएऽ!!”

    इस फ़िल्मी गीत के बोल

    अपने बेटे के साथ

    मिलकर गाते हुए

    जब मैंने सुना था

    —वह समाँ मुझे याद है!

    चुटकी बजा-बजाकर,

    मौज से भूख और अभाव को

    बहलाते हुए,

    मेरे अली बाबा,

    गीतों के दस्तरख़ान बिछाए,

    कविताओं के जाम चढ़ाए,

    अभावों की गहरी छाने,

    बेफ़िक्र, मस्त;

    इसी मस्ती से क्रोध और आवेश के

    कड़ुए घूँट को

    किसी तरह मीठा-सा कुछ बनाए,

    जनता के, जलते हुए अभावों की

    आग में

    नाचते हुए

    अजब अमृत बरसाते

    अनोखे ख़ज़ाने लुटाते,

    आत्मा को तृप्त करते,

    युग की गंगा में ग़ोते लगाते

    अद्भुत स्वाँग बनाए,

    आए मेरे बाबा अली बाबा

    नागार्जुन!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : काल, तुझसे होड़ है मेरी (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1988

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