क्या देह से गुज़रे बिना संभव था प्यार करना

kya deh se guzre bina sambhaw tha pyar karna

शैलजा पाठक

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क्या देह से गुज़रे बिना संभव था प्यार करना

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    हाँ क्यों नहीं!

    प्यार एहसास की परतों में धड़कता है

    आँख की कोर पर पढ़ी जा सकती है :

    नींद की बेचैन लहरों-सी सलवटों की व्यथा

    हथेली के उभार के रूखेपन पर घिसा जाता है

    पूजा के लिए चंदन

    'उँगलियाँ मुहब्बत से भरी हैं तुम्हारी'

    उसने कहा था एक दिन

    किसी दिन की ख़ातिर कोई दिन प्रतीक्षा में चूक गया था

    पीठ की टेक लिए शाम से संवाद किया जा सकता है

    किसी चौराहे से उठाई जा सकती है मुस्कुराहट

    बालों को खोलकर बाँधता प्रेमी कहता है :

    बादलों को इतने नज़दीक से पहली बार देखा

    और जानती हो

    तुम्हारे साथ चलना दुनिया का सुंदरतम सुख है

    मेरी नज़र चूम लेती है तुम्हारी मायूसी

    मेरे छाती में साँस लेती है गौरैया की धड़क

    बरगद-सी पुरानी जड़ों-सा लगता हूँ तुमसे गले

    तुम ही से सोखता हूँ जीवन की संजीवनी

    तुमसे प्यार करते हुए जाना

    देह से नहीं उठानी होती कोई दहकती छुवन

    चुंबन

    आलिंगन

    बस मिट्टी में रोपनी होती हैं उँगलियाँ

    प्यार दूब की तरह पसरा होता है मेरे आस-पास

    मैं उस पर देर तक आँखें मूँद तुम्हें महसूस करता हूँ

    मैं सुख से भरा हूँ

    तू उदास मत हुआ कर मेरी दोस्त...

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैलजा पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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