शहर और गाय

shahr aur gay

जसिंता केरकेट्टा

जसिंता केरकेट्टा

शहर और गाय

जसिंता केरकेट्टा

और अधिकजसिंता केरकेट्टा

    मैं नहीं जानता

    चरागाहों से शहर तक

    गायों की लंबी यात्रा के लिए

    किसने बनवाई सड़कें?

    कौन कर रहा ग़ायब

    पृथ्वी से उनके हिस्से की घास?

    मैं यह भी नहीं जानता

    किसने उड़ाई यह अफ़वाह

    कि शहर के पास

    घास उगा लेने की ताक़त है।

    घासों की तलाश में

    पूरे कुनबे के साथ

    वे निकल पड़ीं

    उस रास्ते पर

    जो जाता था

    शहर की ओर।

    वहाँ भूख की सींगों ने

    तोड़ दिया उनका सारा भ्रम,

    वे तलाशने लगीं

    अपने गाँव-घरों और चरागाहों के रास्ते,

    पर बंद थे सारे रास्ते

    ऊँची इमारतों से।

    सड़कों पर पड़ी उदास

    वे शामिल हो गईं

    बच्चों की टोलियों में,

    टोलियाँ जो भोर होते ही

    चुनने लगती हैं प्लास्टिक कचरे से।

    बच्चों के नन्हे हाथों के बीच

    कचरे के ढेर में फँसा है अब

    उनका मुँह भी।

    सड़क पर बेतहाशा भटकती हुए

    उन्होंने पहली बार देखा

    शहर में इंसान टाँग रहे हैं

    इंसानों को पेड़ पर

    और पहली बार जाना

    शहर के पास

    घास उगाने की कोई ताक़त नहीं।

    सिहर उठी गायें धड़ाम से

    बैठ गईं सड़क पर

    और तब से बैठी हैं

    शहर के बीचों-बीच

    किसी धरने की तरह,

    यह माँगते हुए कि

    वे लौट जाना चाहती हैं

    अपनी घास के पास,

    कि वे जाना चाहती हैं

    जीवित चरागाहों तक

    जो अब भी कहीं उनके इंतज़ार में हैं,

    कि वे गुम हो जाना चाहती हैं

    उन जंगलों में

    जहाँ पेड़ और पत्ते तो बहुत होंगे

    पर आदमी को आती होगी

    किसी आदमी को

    पेड़ पर टाँगने की कला।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जसिंता केरकेट्टा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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