शब्दों के अर्थ

shabdon ke arth

उमा शंकर चौधरी

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शब्दों के अर्थ

उमा शंकर चौधरी

और अधिकउमा शंकर चौधरी

    इस बीच जब बदलने की की जा रही है कोशिश

    हमारा मिज़ाज, हमारा इतिहास

    हमारी सोच

    और सबसे अधिक ये फ़िज़ाएँ

    तब अब बदले जाने लगे हैं शब्दों के अर्थ भी

    बचपन में पिता ने जिन शब्दों के बतलाए थे जो अर्थ

    अब इस समय में उन शब्दों के

    ठीक-ठीक नहीं रह गए हैं वही अर्थ

    जैसे मिट्टी को मिट्टी कहना

    हवा को ठीक ठीक कहना हवा

    ख़ुशबू को ख़ुशबू कहना

    किसी भी रंग को अब ठीक वही रंग कहना आसान नहीं है

    अब गड़बड़ा गए हैं बचपन में सीखे शब्दों के

    ठीक-ठीक हिज्जे

    शब्दों के ठीक-ठीक प्रयोग

    अब जब भी लिखना चाहता हूँ प्रेम

    प्रेम बदल लेता है अपना स्वरूप

    अब कुछ शब्द महज़ शब्द नहीं आपकी पहचान है

    अब जब भी मैं निकलता हूँ अपने देश को प्रेम करने

    प्रेम बदल लेता है अपना स्वरूप

    मेरे सामने खड़े हो जाते हैं ढेर सारे सवाल

    कि कितना करते हैं प्यार आप फूलों से, भँवरे से

    या चिड़ियों की चहचहाहट से

    कितना करते हैं प्यार बारिश की बूँदों से उठने वाली मिट्टी की ख़ुशबू से

    कितना करते हैं प्यार अपनी पहचान से, इस हरियाली से

    कुछ आवाज़ों से, अपने आँसू से, अपनी वजूद से

    या फिर अपनी अंतरात्मा से

    मैं या कि आप कोरे काग़ज़ पर लिखते हैं कुछ शब्द—

    भूख

    आज़ादी

    और अस्मिता

    और जितनी देर में झुकते हैं इन शब्दों को दुरुस्त करने के लिए

    देखते हैं महज़ उतनी ही देर में बदल गए हैं उसके मायने

    महज़ उतनी ही देर में बदल गई है हवा की तासीर

    आपने इधर उस कोरे काग़ज़ पर लिखा नहीं

    आज़ादी कि उतनी ही देर में

    आपके दरवाज़े पर खड़ी हो जाएगी पुलिस

    मेरे मन में हैं ढेर सारे शब्द

    जिन्हें मैं लिख डालना चाहता हूँ यहाँ-वहाँ

    हवा, पानी, आकाश

    और यहाँ तक कि बच्चों की किलकारियों पर भी

    पर हर बार उन शब्दों के बदल दिए जाते हैं अर्थ

    और इन बदले हुए अर्थों के साथ

    हर बार खड़ा हो जाता है एक विशाल हुजूम

    और हर बार मैं बना दिया जाता हूँ उतना ही सशंकित और संदिग्ध।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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