प्राइमरी कक्षाओं के बच्चे

primary kakshaon ke bachche

मोहन कुमार डहेरिया

मोहन कुमार डहेरिया

प्राइमरी कक्षाओं के बच्चे

मोहन कुमार डहेरिया

और अधिकमोहन कुमार डहेरिया

    हँसते ही रहते हैं

    प्राइमरी कक्षाओं के बच्चे

    जब देखो तब

    हर बात जैसे उनके लिए मज़ाक़

    देखते समय कुसमय पात्र-अपात्र

    भक से हँस देते

    हँसने के लिए नहीं चाहिए उन्हें कोई उपयुक्त कारण

    गंजे शिक्षक के माथे पर झूलती ज्ञानी लट हो

    प्रार्थना-सभा में घुस आया बंदर

    या चलते-चलते निकला किसी के जूते का तल्ला

    काफ़ी है उन्हें हँसा देने के लिए

    इन दिनों जबकि

    लुप्त हो रही है सहज और निर्मल हँसी की परंपरा

    रहे नहीं पहले जैसे शास्त्रीय ठहाके

    लोग ढूँढ़ रहे कंप्यूटरों में हास्य-कला की वेबसाइटें

    कुछ लोग हँसते ज़रूर हैं

    हँसना पर उनके लिए किसी को फँसाने का फंदा है

    या जीवन के शेयर मार्केट में उल्लास का निवेश

    कभी-कभी गूँजता मध्यरात्रि में एक भीषण ठहाका

    मिल जाता जब कचरे के ढेर में किसी पागल को रोटी का टुकड़ा

    ऐसे समय में

    प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों तुम यों ही हँसते रहना

    परीक्षा हॉलों में भी बीच-बीच में मुस्कुराते रहना

    हाँ किकिया रहा हो जब

    पूँछ में बँधे जलते फटाकों के कारण कोई कुत्ता कभी हँसना

    हाँ रहे इतना ध्यान

    दाँत पीसे तुम्हारी हँसी सुन कोई लंगड़ा

    कलंक लगे किसी कुबड़े को अपना कूबड़

    स्कूलों के जलसों में

    पीट रहा हो जब महानायक अपनी उपलब्धियों का ढोल

    मीडिया गढ़ता उसकी लोकप्रियता के मिथक

    तुम एक दूसरे को देख कनखियों से हँस देना

    रहा है समय गवाह

    ऐसी बारीक खिलखिलाहटों से भी बदला है इतिहास।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन कुमार डहेरिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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