समकालीन कला केंद्रित संगोष्ठी का आधार वक्तव्य

samkalin kala kendrit sangoshthi ka adhar waktawy

बसंत त्रिपाठी

बसंत त्रिपाठी

समकालीन कला केंद्रित संगोष्ठी का आधार वक्तव्य

बसंत त्रिपाठी

और अधिकबसंत त्रिपाठी

    यह समय

    कूड़ों के हवा में घुलने का

    नालियों के दिमाग़ में खुलने का

    महासमय है

    अनसुलझे सारे प्रश्न

    अपनी चप्पलों के साथ

    धुँधली आभा में गुम हो चुके हैं

    सीमित सफलताएँ

    उन्मादी नृत्य करते हुए

    अपना वज़न तौल रही हैं

    उन्हें वह सब कुछ मिल गया है

    जिसका वायदा फुसफुसाते हुए किया गया था

    जो एड़ी के हल्के दर्द के इलाज के लिए

    अस्पताल में दाख़िल हुआ था

    एक किडनी के साथ

    धक्के मार कर निकाल दिया गया है

    भुने चने खाकर

    जैसे तैसे ज़िंदा लोग खदेड़ दिए गए हैं

    विकास के राज़पथ से

    बदलाव इतना निकट का विचार कि

    लोग मुखौटों से बदलने लगे हैं अपना चेहरा वह कसैला धुआँ छोड़ता कवि

    जो मेहतर चाहता था हतप्रभ है कि झाड़ू चुनाव-चिह्न है

    और प्रधानमंत्री तक जुट गया है सफ़ाई में

    पर दिक़्क़त यह कि कुछ भी साफ़ नहीं हो रहा

    बुहारकर जितना भी इकट्ठा किया गया था कूड़ा

    उसे दिमाग़ में ठूँस दिए जाने का विचार

    संसद में लंबित है इन दिनों

    और कलाएँ हैं कि

    दर्शक-दीर्घा में बैठ

    मुफ़ीद समय का इंतज़ार कर रही हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बसंत त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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