समय पर निगाह

samay par nigah

ऋतु कुमार ऋतु

ऋतु कुमार ऋतु

समय पर निगाह

ऋतु कुमार ऋतु

और अधिकऋतु कुमार ऋतु

    तुम बुरे समय पर निगाह रखो

    क्योंकि वह है तुम्हारी ताक में

    तुम रहो अधिकाधिक संवेदनशील

    ताकि रचे जा सकें शब्द।

    इससे पहले कि समय तुम पर

    झपट्टा मारकर दबोच ले तुम्हारा मुँह

    तुम रहो सतर्क और दर्ज करो उसके रूप-रंग

    ताकि उसे किया जा सके गिरफ़्तार।

    तुम निष्कपट दृष्टि से देखो उस आदमी को

    जो बुरे समय के पक्ष में

    दर्ज कर रहा है अपने दस्तख़त

    तुम दर्ज करो कि वह आदमी

    कब से पैना कर रहा है अपनों के ख़िलाफ़ चाक़ू।

    तुम कभी यक़ीन मत करो कि

    समय सभी को कर देता है पराजित

    क्योंकि मैं देखता हूँ कभी-कभी आदमी को

    समय से बहुत आगे निकल जाते हुए।

    तुम अब समय को पछाड़कर

    उसके ऊपर दर्ज करो अपनी विजय

    और अपने समय के लोगों को बताओ

    कि कैसे पछाड़ा जाता है बुरे समय को।

    तुम बुरे समय में खोई हुई वस्तुओं को मत खोजो

    बल्कि करो आग को प्रज्वलित

    और उसकी रोशनी में

    बुरे समय को करो दृष्टिगोचर।

    देखो कि नीला आकाश कैसे मटमैला हो जाता है

    दिशाएँ कैसे भर जाती हैं धुँध से

    बुरे समय में आदमी कैसे हो जाता है दिशाहीन

    अकाल पृथ्वी पर कब पसारने लग जाता है अपने पाँव।

    हाँ बुरे समय में तुम मृत लोगों की तलाश मत करो

    बल्कि प्रकाश में देखो बुरे समय को

    और उसके ख़िलाफ़

    कार्रवाई की करो एक ताज़ा शुरुआत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस नाउम्मीदी की कायनात में (पांडुलिपि)
    • रचनाकार : ऋतु कुमार ऋतु

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