सपाट सड़क पर

sapat saDak par

जसिंता केरकेट्टा

जसिंता केरकेट्टा

सपाट सड़क पर

जसिंता केरकेट्टा

और अधिकजसिंता केरकेट्टा

    सपाट सड़क पर

    कट चुके हैं पेड़

    हो चुकी हैं झाड़ियाँ साफ़

    चमकने लगी है चौड़ी सड़क।

    चलती गाड़ी से उतर जब

    सड़क पर पेशाब करते हैं पुरुष

    ढूँढ़ती हैं स्त्रियाँ

    कहीं कोई पेड़

    कोई झाड़ी की ओट

    सपाट सड़क पर...।

    सपाट होता नगर

    भेड़ियों से बचकर भागती स्त्रियों से

    उनकी आड़ी-तिरछी गलियाँ छीन लेता है

    जंगल की ओट ख़त्म हो जाती है

    दीवारों का सहारा मिट जाता है

    भागती स्त्रियाँ दूर तक दिख जाती हैं साफ़

    और भेड़िया हँसता रहता है।

    सपाट होते चेहरे पर

    चेहरा और मुखौटा

    दोनों एक-सा लगता है

    आँखें राज़ खोलती हैं

    इसलिए उसे चेहरे से

    ग़ायब करने के सौ जतन हैं

    नाक के लंबे होते रहने के

    कारणों की संख्या बढ़ा दी गई है

    होंठ सिले हुए हैं किसी अदृश्य धागे से

    और सवाल पूछने वालों की लाशें

    दरवाज़े पर पड़ी हैं कल रात से।

    सब कुछ सपाट होते इस देश में

    असली खाइयाँ कहाँ भरी जाती हैं?

    दिलों के भीतर की दीवार

    कहाँ गिराई जाती है?

    कहाँ जाए टुकड़ों में बँटी धरती

    किस सरहद के पार

    माँगने अपना पूरा पूरा हिस्सा?

    यहाँ मृगविहार में हिरणों के लिए

    जंगल से आदमी खदेड़ा जाता है

    और बाघों के बाड़े में ताउम्र

    रहने को छोड़ा जाता है

    यहाँ काले आदमी का

    कालापन पाप बताया जाता है

    उद्धार चाहने वालों के हाथों ही

    सदियों से सताया जाता है।

    स्त्रियाँ इस सपाट सड़क पर,

    सपाट नगर में, सपाट चेहरे पर,

    सपाट होते देश के भीतर

    ढूँढ़ रही हैं वह पेड़

    किसी के लिए कभी

    कोई दुआ जिससे माँगी थी,

    ढूँढ़ रही हैं उस पड़ोसी का घर

    जहाँ अपना पालतू कुत्ता छोड़ आई थीं,

    ढूँढ़ रही हैं वह रास्ता जिसके किनारे

    ठहर कर कभी सुस्ताई थीं,

    वह गली, जिसके आख़िरी छोर पर

    उनका तीसरा प्रेमी रहता था,

    भीड़ में एक वह चेहरा

    जिसकी आँखें बहुत बोलती थीं,

    और वह गली जहाँ खेलता बच्चा

    बहुत सवाल पूछा करता था।

    वह सब कुछ सपाट करने के ख़िलाफ़

    लड़ती हैं कुछ इस तरह

    कि जब आदमी कोशिश करता है

    एक रंग को हर बार करना ज़िंदा करने की

    पानी फेरती हुई स्त्रियाँ धरती पर

    करती है कई रंगों वाले बच्चों को पैदा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जसिंता केरकेट्टा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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