गंगा और साइबेरियन पक्षी

ganga aur saiberiyan pakshi

शुभांगी श्रीवास्तव

शुभांगी श्रीवास्तव

गंगा और साइबेरियन पक्षी

शुभांगी श्रीवास्तव

और अधिकशुभांगी श्रीवास्तव

    बहुत दूर है साइबेरिया

    बनारस की गंगा से बहुत दूर

    बनारस में झुंड में उतरते हैं साइबेरियन पक्षी

    अपने समूह की लय को लहरों पर उतारते हुए

    बनारस में साइबेरिया

    अपने पंखों से उतरता है छा जाता है

    नावें भरी हैं सैलानियों से

    सैलानियों के हाथों में लाई नमकीन वाले ठोंगें

    झर-झर झरते हैं पक्षियों के लिए

    होड़ मच जाती है उड़ानों की

    पक्षियों की अदाएँ

    दानें टूँग लेने की टकराहटें

    भूख और क्रीड़ा का तालमेल देखते अघाते नहीं सैलानी

    घाट पर खड़े वृक्ष पर तोते का जोड़ा

    इसी होड़ में उतरता है

    मैना परखती विदेशी पक्षियों की भूख

    उनकी चंचलता

    उनकी तरह लहरों पर उतरना चाहती है

    फिर लौट जाना चाहती है अपने ठीहे पर

    उसके पंखों में

    घाट थहाने भर उड़ान है

    उसके नए पड़ोसी

    साइबेरियन पक्षी

    ये मौसम खोजते आते हैं नदी के पास

    नदी से मलबा निकाल रहे हैं सफ़ाई अभियान वाले

    तैर रहा है प्लास्टिक माला फूल और

    सैलानियों की मुट्ठियों से झरता चारा

    उनके चूकते निशाने से पानी में पैठता है

    हर अभियान एक राजनीतिक कर्तव्य है

    सच से ज़्यादा सच की तरह का झूठ है

    कई किनारों पर साबुन लगा नहा रहे हैं लोग

    कपड़े धो रहे हैं

    मैली एड़ियाँ रगड़ रहे हैं

    थूक रहे हैं खंखार रहे हैं

    नदी के पड़ोसियों की दिनचर्याएँ हैं

    नदी पर जम रही है ओस

    बूढ़े घर लौट रहे हैं

    बच्चे मचल रहे हैं

    पुरखिनों की बात अभी बाक़ी है

    बच्चे खिलौने समेट रहे हैं

    घाट पर चाय की दुकान से उठती है भाप

    कोहरे में सब मिल रहे हैं अभी

    नावें रही हैं

    जा रही हैं

    टूरिस्ट गाइड कहता है :

    ‘जनवरी गई, विदेशी कम हैं

    कम है कमाई

    अब जा हो कोरोना माई’

    पलट कर कहता है :

    ‘सर! सी दिस घाट’

    इशारों में कहता है :

    ‘चला एके आस्रम देखा देईं

    कुछ देबै करी सरवा’

    साइबेरियन पक्षियों के चारों तरफ़

    बनारस एक कोलाज़ है

    शोर में शामिल है

    उनके पंखों की आवाज़

    भूख और उड़ान

    बनारस अपनी भूख के लिए अभी कहीं

    उड़कर जाने के बारे में नहीं सोच रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभांगी श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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