तुलसीदास

tulsidas

बी. गोपाल रेड्डी

और अधिकबी. गोपाल रेड्डी

    भक्त शिरोमणि तुलसीदास ने

    विनम्रता औ’ श्रद्धा से

    राम-कथा का सृजन किया है,

    उसे रामचरितमानस का नाम दिया है।

    वाल्मीकि की कल्पना में

    श्रीराम पुरुषोत्तम हैं, आदर्श मानव हैं।

    शताब्दियाँ बीत गईं

    राम-कथा देश भर में फैल गई।

    विविध रूपों में राम का गुणगान होने लगा

    लोकप्रियता से राम को ईश्वरत्व मिल गया।

    यह भावना फैल गई

    कि राम ईश्वर का अंश है,

    विष्णु का अवतार है।

    इसी महोन्नत भावना को अपनाकर

    तुलसी ने भक्ति और आवेग उँड़ेलकर

    वेदांत दर्शनों को जोड़कर

    जनता की भाषा अवधी में

    अपढ़ों के लिए भी सरल

    दोहा-चौपाई शैली में

    कटे-छँटे छोटे शब्दों से

    रामचरितमानस का सृजन किया है।

    लीन हो गईं चार शताब्दियाँ काल-प्रवाह में

    राज्यों का अंत हुआ,

    किंतु रामचरितमानस

    उन्नत हिमगिरि-अंक-शायिनी

    मानसरोवर में

    विहार करते राजहंस-सी

    बढ़ती कीर्ति-धवलता से

    पंडित-पामर का शिरोधार्य बनकर

    संकीर्तन-ग्रंथ बनकर

    पूजा सामग्री बनकर

    शोभायमान है

    हिंदी साहित्य के मंदिर में

    हिंदी-प्रेमियों के श्रद्धानत हृदयों में।

    वाल्मीकि रामायण से भी बढ़कर

    उसे ऊँचा स्थान मिला है।

    जाने किस पवित्र हृदय से सृजन हुआ है!

    किस शुभ वेला में राम-ध्यान से आरंभ हुआ है।

    इसका परिमल देश-विदेशों में महक उठा है

    जनता औ’ साहित्य के बीच संबंध सशक्त हुआ है।

    यही इसकी विलक्षणता है,

    यही इसकी लोकप्रियता का रहस्य

    आर्यावर्त को उसने

    एक ही धार्मिक सूत्र में बाँध दिया है

    भावात्मक एकता को इसमें

    सुस्थिर आधार मिला है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लोकालोक (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : बी. गोपाल रेड्डी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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