कवि-भ्रम

kawi bhram

रजनीश संतोष

रजनीश संतोष

कवि-भ्रम

रजनीश संतोष

और अधिकरजनीश संतोष

    कवि होने का भ्रम जकड़े रहता है

    अजगर की कुंडली जैसा

    दमघोंटू जकड़न

    साँस भी सीधे नहीं ले सकता

    इधर-उधर कसस-मसस करके ही लेता हूँ

    किसानों की मौत को सीधे-सीधे हत्या कहने में हिचक जाना ही

    कवि-धर्म है

    इसे मैं कुछ यूँ कहूँगा :

    “हल चलाने वाले हड़ताल पर हैं”

    या “हीरा-मोती को पकड़ने अब कोई जाना नहीं चाहता”

    या “उन्हें इतनी जल्दी थी कि सरकारी मुआवज़े तक भी सबर हुआ”

    या यूँ कह सकता हूँ :

    “आहा! क्या आध्यात्मिक लोग थे,

    आत्मा को परमात्मा में विलीन करने को आतुर”

    और एक दिन

    ख़ामोशी को आत्महत्या का सबसे सटीक बिंब बना दूँगा

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुनो समय (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : रजनीश संतोष
    • प्रकाशन : साहित्य संचय
    • संस्करण : 2019

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए