राम बुझारथ

ram bujharath

संदीप तिवारी

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राम बुझारथ

संदीप तिवारी

और अधिकसंदीप तिवारी

    राम बुझारथ कोई आदमी नहीं था

    एक बछड़ा था

    जिसे मैंने पाला था

    ढरकी से दूध पिला-पिला कर

    मर गई थी जिसकी माँ

    बचपन में ही

    जब सारे खेतों में घास सूख गई रहती

    मैं खोज लाता उसके लिए

    कहीं से

    दो-चार मूठी हरी घास

    कितनी भी दूर से बुलाऊँ उसका नाम

    शब्द हवा में तैरता हुआ

    सीधे उसके कान तक जाता

    वह उतने ही जोर से जवाब देता

    और तब तक देखता

    आवाज़ की दिशा में

    जब तक कि मैं उसके सामने पहुँच जाता

    जैसे रामबुझारथ को हमारी भाषा का ज्ञान रहा हो

    देखते-देखते बड़ा हो गया रामबुझारथ

    देखते-देखते आने लगे उसके ख़रीदार

    एक दिन कोई आया

    पाँच सौ की एक नोट देकर,

    ले गया पकड़कर उसका पगहा

    कितना खेत जोता होगा मेरा रामबुझारथ

    कितनी बार मारा गया होगा

    कितनी बार रोया होगा बैठकर अकेले में

    कितनी बार सोचा होगा बहुत कातर होकर

    कि कभी तो कोई आए उसे लेने

    यहाँ से गया

    क्या पता जहाँ गया, वहाँ से भी गया हो कहीं

    मैं जा पाया उससे मिलने

    वह आया कभी लौटकर

    अब तो इस दुनिया में भी नहीं होगा वह!

    आज मेरे पास रह गई है

    उसकी एक धुँधली-सी छवि

    जिसमें वह उस छोटे से नीम के बग़ल

    बैठा पगुरा रहा है

    बहुत निश्चिंत होकर

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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