कूड़ राजा कूड़ प्रजा

kooD raja kooD praja

जसबीर सिंह आहलूवालिया

जसबीर सिंह आहलूवालिया

कूड़ राजा कूड़ प्रजा

जसबीर सिंह आहलूवालिया

और अधिकजसबीर सिंह आहलूवालिया

    बहूत समय से सुन रहा हूँ

    शहर में शोर है।

    नगरबंद भी हो चुके हैं

    धमकियों का ज़ोर है।

    नारों की गूँज में

    लुप्त है जो माँग है

    अँधेंरे जिस तरह का

    नौ मन जो भार है

    गाड़ियों पर लदा

    अंबार है अंगिआर है...

    पर राधिका नाम होश है।

    मंदिरो और गुरुद्वारों में

    रोष है और जोश है।

    कर सकी सरकार मेरी

    जो भी है सो सामने

    यज्ञ हुए अधिवेशन भी

    डोल रहा जब सिंहासन था

    लाठी चली और भाषण भी।

    नित्य नए मुँह जन्मते

    नित्य नए मुँह अन्न दाना माँगते

    पंचवर्षीय योजना फिर भी चलाई

    हो गया फ़रमान जारी तुरंत ही

    पंच वर्ष संतति संयम हो रहे

    पंच वर्ष हर भँवर से फूल

    हो रहे कुछ-कुछ परे

    मायाधारी जो कोई संकोच में

    तो नव-जात बाल का सिर गर्दन से फिर कट जाए।

    पहरे का था हुकुम हुआ।

    हर नदी के तीर पर

    ताकि कोई जा सके ना

    घर यशोदा दौड़कर

    पर लगता है कुछ स्मग्लिंग हो गई!

    चौदह वर्ष बनवास और सो जा रहा

    संग मेरे जाएगा साया मेरा

    और कोई जा सके ना दूसरा

    मासिले उसने जो पहनकर सफ़ेद कपड़े

    काले रंग का सच्चा सोदा शहर में कर रहा।

    यह क्या हूँ मैं देखता।

    कि नगर सारा उमड़कर है पीछे मेरे रहा!

    क्या कहा है जो?

    शहर में एक व्यक्ति रह गया!

    जो कह रहे विस्माद में अंदर

    मैं तो माक्खन चोर हूँ

    इस शहर में चोर के बिना सब चोर हैं।

    हम सभी एक को दूसरे में भरते, बिना इसके।

    यदि यही इच्छा आपकी

    कि फिर सिंहासन बैठ जाऊँ

    तो बीता मैं वक़्त नहीं

    जो लौटकर सकूँ।

    त्याग-पत्र पर मेरे हस्ताक्षर भी है नहीं।

    लोक-राजी आपका यह देश हे

    आदेश उसे आदेश है!

    आदेश उसे आदेश है!!

    आदेश उसे आदेश है!!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरी प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 28)
    • रचनाकार : जसबीर सिंह आहलूवालिया
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2002

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