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प्रेमक भास

premak bhaas

धीरेन्द्र प्रेमर्षि

और अधिकधीरेन्द्र प्रेमर्षि

    कलकल छलछल बहनिहार, स्वच्छन्द निर्मल धार हम

    बागसँ बेरबैत काँट-कूश, सजबी फूलक संसार हम

    कल्हुको सूर्यक सहजि किरण, लऽ आनब नवका भोर हम

    डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

    राग-द्वेशके बात ने जानी, गाबी प्रेमक भास हम

    बारि लगनसँ दीप सृजनके, परसी सदति उजास हम

    भरि सकै छी खुशहालीसँ, धरतीक पोरे-पोर हम

    डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

    जोशक सङ्ग-सङ्ग जूति भिड़ा, केहन पर्वत हम नाँघि चली

    जाति-पाति वा धन-वैभव नै, प्रेमसँ जनमन तागि चली

    केहनो जकथल बर्फ गलाबी, छी बरकैत इनहोर हम

    डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

    कर्महिमे हम देखी ईश्वर, मानवता विश्वास हमर

    हाँकब नवयुगके हमहीँ सभ, प्रेम-परिश्रम आश हमर

    चलू लबै छी सुखसागरमे, मिलि-जुलि सहज हिलोर हम

    डेग बढ़ाबै चल रे मीता, भऽ जाइ एक सङोर हम

    स्रोत :
    • पुस्तक : ई-मिथिला
    • संपादक : बालमुकुन्द
    • रचनाकार : धीरेन्द्र प्रेमर्षि
    • संस्करण : 2025

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