शिवप्रिया

shiwapriya

बाबुषा कोहली

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शिवप्रिया

बाबुषा कोहली

और अधिकबाबुषा कोहली

    सवालों के 
    जवाब आएँ न आएँ,
    पुकार का जवाब ज़रूर आता है...

    खारा जल आँखों की लिपि है ज्यों हँसी होंठों की

    छलता है जल तुम्हें
    हँसी मेरे होंठ छील-छील जाती है
    तुम इतने अबोध कि होंठ पर सुख
    अँखियों में दुःख पढ़ते हो?

    मेरी कविता की सयानी भाषा में मत पढ़ो मुझे
    पढ़ो मेरी अल्हड़ भंगिमाओं में
    आँखों से छिटक मेरी नींद जिस तकिए पर छूट गई थी
    पढ़ो उस तकिए के कोर में
    चंद्रमा की उजास में ढूँढ़े न मिलेंगे मेरी बोली के जुगनू
    पढ़ो मुझे चकवे की टेर में, सतपुड़ा की भोर में
    या कि पढ़ो उस चित्र में 
    जहाँ पेंसिल से बनी धुँधली डाल पर बैठी है घायल गौरैया
    पन्ने पर टपका उसका लहू शुष्क हो चला है
    पढ़ो मुझे चिड़ियों की चोटिल उड़ानों में

    तुम
    बूझ लो मेरी भाषा 
    रात की चुप्पी में; चहक की चाह में
    मेरी सजल आँखें पढ़ने का कौशल भरो अपनी धवल क़मीज़ में
    मेरी हँसी का रहस्य भेद लो, एक नज़र की रीझ में

    आओ तुम! 
    मेरी नींद के ठोस में जमी चहक को तरल करो
    मेरी मायावी मुद्राओं के व्यूह को विफल करो
    अपनी देह के उपवन में झरे शिउली के फूल सिरा दो मेरी आत्मा की रेवा में
    किसी बिसरी हुई प्रमेय की गुत्थी को सुमिरन की सूझ से हल करो

    आओ तुम!
    ले आओ अपने शस्त्र सारे
    मेरी भाषा को पराजय का वैभव दो
    ध्वस्त कर दो मेरे बिंबों के दुर्ग
    मेरे रूपकों को रिक्तता का ऐश्वर्य दो
    मेरे हृदय से शब्दों की छवियाँ गिरा दो
    मेरी नाभि से अनहद का नाद उठा दो
    सदियों के वियोग की पीर हरो 
    मेरे अचेत चित्त में प्राण भरो
    मंत्रबद्ध करो मेरा उन्मुक्त श्वास
    मेरी धमनियों को साधो
    मुझे सोहम् करो

    मेरे तप की बाधा को निष्फल करो 
    मेरे चंचल मन को अचल करो
    मेरे निर्वात में अपनी उपस्थिति का बल भरो

    मेरे मौन को अपने कंठ में धरो

    प्रिय!
    गलने दो अर्थ भी, 
    अभिप्राय भी, संकेत भी
    वाष्पित हो रहने दो विषय का व्याख्यान

    फिर अपनी भाषा को मेरी आँखों का जल करो

    स्रोत :
    • रचनाकार : बाबुषा कोहली
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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