प्रतीक्षावादी का गीत

prtikshawadi ka geet

कुमार अनुपम

कुमार अनुपम

प्रतीक्षावादी का गीत

कुमार अनुपम

और अधिककुमार अनुपम

    एक दिन जब समुंदरों में नहीं बचेगा एक क़तरा भी नमक

    इस समय ख़ुद पर गुज़र रहे विकट क्षणों की एक-एक खरोंच को

    खुरच-खुरच पुन: महसूस करूँगा रोऊँगा अथक विलाप करूँगा

    और समुंदरों को आँसुओं से पाट दूँगा

    ऐसे ही आपातकाल के मद्देनज़र इन्हें ख़र्चना नहीं

    एक दिन जब पृथ्वी पर गर्म हाथों की आहट को मशीनों की धड़धड़ाहट

    से चुप करने का कार्यक्रम होगा सफलता के अतिनिकट

    चिल्लाऊँगा अछोर चीख़ूँगा

    और असह्य कष्टों को झेलते हुए बचाई गई चीख़ को मशीनों पर दे मारूँगा

    ऐसे ही आपातकाल के मद्देनज़र फ़िलहाल चुप हूँ

    एक दिन जब विकट शांति होगी

    नदियों के बहने और हवा के चलने तक की नहीं होगी आवाज़

    उछलूँगा कूदूँगा पगला जाऊँगा और

    ज़िंदा रहने के सारे नियम अनुशासन तोड़ डालूँगा

    ऐसे ही आपातकाल के मद्देनज़र मूर्खता की हद तक शालीन हूँ अभी

    एक दिन जब दिन में रात हो जाएगी अचानक

    और कुछ संभव नहीं होगा अधिक

    ख़ुद को

    आग को सौंप दूँगा रोशनी करूँगा भरसक

    ऐसे ही आपातकाल के मद्देनज़र बना पड़ा हूँ अभी ठूँठ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बारिश मेेरा घर है (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : कुमार अनुपम
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

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