प्रजापति

prajapati

राजेश जोशी

राजेश जोशी

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राजेश जोशी

और अधिकराजेश जोशी

    चीज़ों का हूबहू दिखना अपनी ही शक्ल में

    कविता में मुझे पसंद नहीं बिल्कुल

    मैं चाहता हूँ मेरा फटा-पुराना जूता भी दिखे वहाँ

    पूर्णिमा के पूरे चाँद की तरह

    एक साबुन की तरह दिखे मेरी आत्मा

    छोटी-छोटी विकृतियाँ और अंतर्विरोध भी दिखें वहाँ

    फूली हुई नसों वाले राक्षसों से इतने वीभत्स और दैत्याकार

    कि आसानी से की जा सके उनसे घृणा

    की जा सके नफ़रत

    मुझे पसंद हैं वे विदूषक जो मंच पर आने से पहले ही

    रँग लेते हैं अपना पूरा चेहरा

    मैं चाहता हूँ

    बेहद थका और ऊबा हुआ फ़ोरमैन भी जब अपने घर में घुसे

    तो बदल जाए तत्काल उसका चेहरा

    अपनी पाँच बरस की बेटी के पिता की तरह

    बदल जाएँ, बदल जाएँ लोगों के चेहरे

    जब वे मेरी कविता में आएँ

    हीरे की तरह चमकती हुई दिखें लोगों की

    बहुत छोटी-छोटी अच्छाइयाँ

    कि आत्महत्या करता आदमी पलट कर दौड़ पड़े

    जीवन की ओर चिल्लाता हुआ

    कुछ नहीं है जीवन से ज़्यादा सुंदर

    जीवन से ज़्यादा प्यारा

    जीवन की तरह अमर

    मैं चाहता हूँ

    कि कविता के भीतर फैली आसमान की टेबिल पर

    मैं जब सूरज के साथ चाय पी रहा होऊँ

    एक विशाल समुद्र की तरह दिखे

    मेरा कप।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 74)
    • रचनाकार : राजेश जोशी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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