पथिक

pathik

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।

रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।

नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।

घन पर बैठ,बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है॥

रत्नाकर गर्जन करता है,मलयानिल बहता है।

हरदम यह हौसला ह्रदय में प्रिये! भरा रहता है।

इस विशाल,विस्तृत,महिमामय रत्नाकर के घर के-

कोने-कोने में लहरों पर बैठे फिरूँ जी भर के॥

निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधुरा।

कमला के कंचन-मंदिर का माना कांत कँगूरा।

लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।

रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी॥

निर्भय,दृढ़,गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।

लहरों पर लहरों का आना सुंदर,अति सुंदर है।

कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?

अनुभव करो ह्रदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी॥

जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है।

अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।

सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।

तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है॥

उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है।

वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।

पक्षी हर्ष सँभाल सकते मुग्ध चहक उठते हैं।

फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं-

वन,उपवन,गिरी,सानु,कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।

मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।

पढो लहर,तट,तृण,तरु,गिरी,नभ,किरन,जलद पर प्यारी।

लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी॥

कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी।

जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

स्थिर,पवित्र,आनंद-प्रवाहित,सदा शांति सुखकर है।

आह! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है॥

स्रोत :
  • पुस्तक : आरोही (पृष्ठ 143)
  • रचनाकार : रामनरेश त्रिपाठी
  • प्रकाशन : एन सी ई आर टी
  • संस्करण : 2022-2023

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