पसिंजरनामा

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संदीप तिवारी

संदीप तिवारी

पसिंजरनामा

संदीप तिवारी

और अधिकसंदीप तिवारी

    काठ की सीट पर बैठ के जाना

    वाह पसिंजर ज़िंदाबाद

    बिना टिकट के रायबरेली

    बिना टिकट के फ़ैज़ाबाद

    हम लोगों की चढ़ी ग़रीबी को सहलाना

    वाह पसिंजर ज़िंदाबाद

    हाथ में पेपरबैक किताब

    हिला-हिलाकर चाय बुलाना

    रगड़-रगड़ के सुरती मलना

    ठोक-पीटकर खाते जाना

    गँवई औरत के गँवारपन को निहारना

    वाह पसिंजर ज़िंदाबाद

    तुम भी अपनी तरह ही धीरे

    चलती जाती हाय पसिंजर!

    लेट-लपेट भले हो कितना

    पहुँचाती तो तुम्हीं पसिंजर

    पता नहीं कितने जनकवि से

    हमको तुम्हीं मिलाती हो

    पता नहीं कितनों को जनकवि

    तुम्हीं बनाते चली पसिंजर

    बुलेट उड़ी औ' चली दुरंतो

    क्योंकि तुम हो खड़ी पसिंजर

    बढ़े टिकट के दाम तुम्हारा क्या कर लेंगे?

    वाह पसिंजर ज़िंदाबाद

    छोटे-बड़े किसान सभी

    साधू, संत और संन्यासी

    एक ही सीट पे पंडित बाबा

    उसी सीट पर चढ़े शराबी

    चढ़े जुआड़ी और गजेंड़ी

    पागल और भिखारी

    सबको ढोते चली पसिंजर

    यार पसिंजर!

    तुम तो पूरा लोकतंत्र हो

    सही कहूँ गर तुम होती

    कैसे हम सब आते-जाते

    बिना किसी झिकझिक के सोचो

    कैसे रोटी-सब्ज़ी खाते

    कौन ख़रीदे पैसा देकर 'बिसलरी'

    उतरे दादा लोटा लेकर

    भर के लाए ताज़ा पानी

    वाह! पसिंजर

    तुम्हरी सीटी बहुत मधुर है

    सुन के अम्मा बर्तन माँजे

    सुन के काका उठे सबेरे

    इस छलिया युग में भी तुम

    हम लोगों की घड़ी पसिंजर

    सच में अपनी छड़ी पसिंजर

    वाह पसिंजर ज़िंदाबाद

    भले कहें सब रेलिया बैरिन

    तुम तो अपनी जान पसिंजर

    हम जैसे चिरकुट लोगों का

    तुम ही असली शान पसिंजर

    वाह पसिंजर ज़िंदाबाद

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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