परिवर्तन लाना होगा

pariwartan lana hoga

एन.पी. सिंह

एन.पी. सिंह

परिवर्तन लाना होगा

एन.पी. सिंह

और अधिकएन.पी. सिंह

    देखता हूँ हर ओर

    एक उद्वेलन

    आक्रोश, व्याकुलता,

    सुनता हूँ गोष्ठियों में तीखे स्वर,

    संकल्प समूह नष्ट करने का,

    करने का सृजन

    व्यवस्था का बेहतर विकल्प,

    प्रबल वेग बौद्धिक विमर्श का

    अकल्पनीय झंझावात

    सुनामी-सा जनांदोलन,

    कुछ छींटे, कुछ चीख़ें,

    कुछ सीखें।

    आरोप-प्रत्यारोप का अनियंत्रित सैलाब,

    रथारूढ़ थका सारथी

    उद्घोष करता छद्म युद्ध का,

    वीथियों, डगर-डगर

    अलख जगाता,

    करता कसरतें अस्मिता स्थापना की

    मंचों पर बाँहें उठा-उठा,

    बाग देता यथा बहरों को।

    करता अभिनय,

    नृत्य करता करतल ध्वनि पर,

    स्वयं को मसीहा-स्वरूप में

    प्रस्तुति का अनोखा व्यायाम करता।

    नारों के बवंडर में

    स्वयं के अहं को उन्नत करता,

    वक्तृता की प्रतिद्वंद्विता में लिप्त

    भाषाई-संस्कार को लाँघता,

    भर्त्सना के ज़ोरदार हथौड़े से करता वार।

    गला फाड़कर झूठी गवाही देता

    अपने सत्कर्मों के फ़ेहरिस्त की

    टी.वी. चैनलों पर,

    चीख़-चीख़कर लड़ता

    ख़ुद को स्थापित करने की सारहीन जंग।

    बड़े-बड़े लेख,

    लंबी-लंबी समीक्षाएँ,

    तीखे-नुकीले तर्क

    क्रीत-दासों के,

    ख़ास मक़सद से जुटाई

    भीड़ की करतल ध्वनि,

    कुछ उपवास, कुछ टोपियाँ

    कुछ टोटके, कुछ झटके

    एक फ़रेब, एक वृत्त चित्र-सा लगता है।

    क्या यह संघर्ष निजात दिला सकेगा

    महादानव के ख़ूनी पंजों से?

    सुबकते, सिसकते, रिसते घाव लेकर

    मौन बेबस जमात को,

    जो ख़ामोश देख रही है

    नपुंसक योद्धाओं के संघर्षों की

    साज़िशी पटकथा।

    इन अभिनेताओं की नूराकुश्ती,

    जो बदलाव के नाम पर

    देते हैं एक नई धुंध,

    धुआँ और राख,

    स्थापित करते हैं अपना दर्द

    शोषण के नए स्तंभ,

    उनका मक़सद बदलाव व्यवस्था में नहीं

    व्यवस्थापक बदलने में है।

    वे उठा रहे हैं लाभ

    समूह की चुप्पी का,

    अभिनेता का सही स्थान

    मिलेगा वास्तविक किरदारों को,

    जब समूह इन तिलिस्मों में

    तिरते मर्म को समझ उठ खड़ा हो।

    वह समूह जो व्यवस्था की कीलों से—

    घायल, लथपथ, अभिशप्त, विक्षिप्त

    हताश, निराश, शोषित होकर भी

    अशक्त बन निहार रहा हो

    किसी अवतारी महामानव की

    प्रतीक्षा में, निरभ्र आकाश की ओर।

    ध्वस्त करने होंगे

    निरर्थक मुद्दों के पहाड़,

    सँवारने होंगे धूल-धूसरित

    शाश्वत मूल्यों के खँडहर,

    करना होगा सावधान

    वर्तमान पीढ़ी को,

    नए गढ़े जा रहे

    विषधर प्रतिमानों से,

    बचाना होगा ख़ुद को

    नव प्रतीकों के सौदागरों से।

    तलाशने होंगे वाजिब प्रश्न,

    तोड़नी होगी उदासीन ख़ामोशी,

    लाना होगा सैलाब

    बुलंद आवाज़ों का,

    जिसमें बहा देना होगा

    वैचारिक खर-पतवारों को,

    ढहाना होगा व्यामोह-जनित

    झूठ के ईंट और

    फ़रेब के गारे से निर्मित

    आततायी दुर्ग को।

    तभी होगा नव विहान,

    निर्मित होगा समावेशी लोकतंत्र,

    निकलेगा नवांकुर

    सुदृढ़-सशक्त भारत का।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द! कुछ कहे-अनकहे से... (पृष्ठ 81)
    • रचनाकार : एन.पी. सिंह
    • प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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