कबीर और कोरोना

kabir aur korona

पंकज चौधरी

पंकज चौधरी

कबीर और कोरोना

पंकज चौधरी

और अधिकपंकज चौधरी

    यदि वह ईश्‍वर है

    भगवान है

    तब फिर किसी मंदिर की मूर्तियों में ही कैसे क़ैद है?

    यदि वह अल्‍लाह है

    ख़ुदा है, रहमान है

    तब फिर किसी मस्जिद में ही क्‍यों खुदाया है?

    यदि वह गॉड है

    तब फिर कोई गिरजाघर ही उसका क्‍यों घर है?

    वह क्‍या है, नहीं है

    इस आपद् घड़ी में हमें बता दिया है

    कि जिसने इस पूरे ब्रह्मांड को रचा है

    वह मूर्तियों में कैसे समा सकता है?

    वह मस्जिद की दीवारों में क्‍योंकर खुदाएगा?

    वह गिरजाघरों में क्‍यों दुबक जाएगा?

    इस महामारी में

    जब उसके अनुयायी भी

    अपने-अपने घरों में नज़रबंद हो चुके हैं

    वह अपने निवासस्‍थानों को छोड़कर क्‍यों भाग जाएगा?

    जिसकी खोज

    हज़ारों-लाखों साल से जारी है

    वह किसी मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर में

    कैसे मिल जाएगा?

    जिसका कोई रूप नहीं है

    कोई आकार नहीं है

    वह कैसे बार-बार

    किसी रूप में अवतार लेगा?

    जो दसों दिशाओं में है

    आठों पहर में है

    जो नृत्‍य करते पत्‍तों में है

    पछाड़ खाते समुद्र की लहरों में है

    जो संगीत में है

    जो दीदारगंज की यक्षिणी में है

    जो पहाड़ों पर है

    मैदानों में है

    जो झूमती हवाओं में है

    सूरज की सुनहरी धूप में है

    जो खिलते फूलों में है

    पत्रहीन नग्‍न गाछों में है

    जो बिरहमन में है

    जो दलित में है

    जो शेख़ में है

    जो पसमांदा में है

    जो पंजाब में है

    जो ओडिशा की कालाहांडी में है

    जो काकेशियन में है

    जो अफ़्रीकन में है

    जो साइबेरिया के बर्खोयानस्‍क में है

    जो अमेरिका की डैथ वैली में है

    जो बच्‍चों के आँसुओं में है

    जो उनकी मुस्‍कानों में है

    जो मुझमें है

    जो तुझमें है

    वह कहाँ नहीं है!

    जो निर्गुण है

    उसे किसी ख़ास गुण में

    किसी ख़ास स्‍थान पर

    कैसे बाँध पाओगे?

    यह बात

    कबीर बाबा ने

    कितना पहले समझा दी थी!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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