पैदल चलना

paidal chalna

सिद्धेश्वर सिंह

सिद्धेश्वर सिंह

पैदल चलना

सिद्धेश्वर सिंह

और अधिकसिद्धेश्वर सिंह

    बहुत दिनों बाद

    पैदल चलकर गया काम पर

    बहुत दिनों बाद गति में दिखे अपने पैर

    बहुत दिनों बाद दिखी अपनी सचल परछाईं

    बहुत दिनों बाद दिखे कुछ नए दृश्य

    रोज़ाना के जाने-पहचाने रास्ते पर।

    पैदल चलते हुए दिखा

    कि अब भी पैदल चलते हैं ढेर सारे लोग

    दिखा कि बंद हो चुके सिनेमाघर की दीवार पर

    अब भी चिपका है

    किसी फ़िल्म का बदरंग हो चुका पोस्टर स्मृति की तरह

    साइकिलें अब भी सक्रिय हैं अपने मोर्चे पर

    लेटर बॉक्स

    अब भी प्रतीक्षा में हैं चिठ्ठियों के लिखे जाने की

    फड़ पर अब भी सजती हैं दुकानें

    और पैदल चलकर आते हैं ख़रीददार

    लेबर चौराहे पर अब भी खड़ा होता है

    पैदल चलकर आया हुआ जन-समूह।

    दिख गया कि मैदा मिल के आगे

    सिर उठा रहा है एक विशालकाय बाज़ार

    शायद कोई मॉल

    चौराहे पर बन गया है नया चबूतरा

    जिसके लोकार्पण के पत्थर पर

    लिखे गए हैं उन महानुभावों के नाम

    जिनके बारे में छपता अख़बारों में आए दिन

    पैदल चलो तो दिखता ही नहीं

    कि कितनी तेज़ होती जा रही है दुनिया की रफ़्तार!

    पैदल चलते देख

    रुक कर पलट कर देखते हैं परिचित गाड़ी सवार

    आश्चर्य और अचंभे से

    पूछते हैं कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं

    मानो कि आज की दुनिया में

    पैदल चलना हो जैसे कोई असामान्य काम।

    पैदल चलते हुए

    सोचता रहा पैदल चलने के बारे में

    याद किया कि कितने-कितने दिन बीत जाते हैं यूँ ही

    बिना सोच के

    पैदल चलते हुए लगा कि

    वाहनों के अशेष रेवड़ से भरे इस संसार में

    पैदल ही चलते हैं विचार

    बशर्ते कि कभी पैदल चलना भूल जाएँ हमारे पाँव।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सिद्धेश्वर सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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