असंवाद की एक रात

asanwad ki ek raat

लवली गोस्वामी

लवली गोस्वामी

असंवाद की एक रात

लवली गोस्वामी

और अधिकलवली गोस्वामी

    जितनी नमी है तुम्हारे भीतर

    उतने क़दम नापती हूँ मैं पानी के ऊपर

    जितना पत्थर है तुम्हारे अंतर

    उतना तराशती हूँ अपना मन

    किसी समय के पास संवाद बहुत होते हैं

    लेकिन उनका कोई अर्थ नहीं होता

    जब अर्थ अनगिनत दिशाओं में बहते हैं

    बात बेमानी हो जाती है

    इच्छाओं की जो हरी पत्तियाँ असमय झरीं

    वे गलीं, मन के भीतर ही, अपनी ही जड़ों के पास

    खाद पाकर अबकी जो इच्छाएँ फलीं

    वे अधिक घनेरी थीं, इनकी बाढ़ (वृद्धि) भी

    गुज़िश्ता इच्छाओं से अधिक चीमड़ थी

    कुछ स्मृतियों से बहुत सारे निष्कर्ष निकालती आज मैं

    आदिहीन स्मृतियों और अंतहीन निष्कर्षों के बीच खड़ी हूँ

    तुम्हारा आना सूरज का उगना नहीं रहा कभी

    तुम हमेशा गहराती रातों में कंदील की धीमी लय बनकर आए

    तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता था

    कि मुझे चौंधियाती रौशनियाँ पसंद नहीं हैं

    चुप्पियों के कई लबादे ओढ़ कर अलाव तापने बैठी है रौशनी

    अँधेरे इन दिनों खोह की मिट्टी हवा में उलीच रहे हैं

    मेरा अँधियारों में गुम हो जाना आसान था

    तुम्हारी काया थी जो अंधकार में

    दीपक की लौ की तरह झिलमिलाती थी

    तुम्हारी उपस्थिति में मुझे कोई भी पढ़ सकता था

    हम उस चिठ्ठी को बार-बार पढ़ते हैं

    जिसमें वह नहीं लिखा होता

    जो हम पढ़ना चाहते थे

    क्षमाओं की प्रार्थना

    अपने सबसे सुंदर रूप में कविता है

    भले ही आप गुनाहों में शामिल हों।

    स्रोत :
    • रचनाकार : लवली गोस्वामी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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