पार्वती-योनि

parwati yoni

नेहा नरूका

नेहा नरूका

पार्वती-योनि

नेहा नरूका

और अधिकनेहा नरूका

    ऐसा क्या-किया था शिव तुमने?

    रची थी कौन-सी लीला?

    जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग

    माताएँ बेटों के यश, धन पुत्रादि के लिए

    पतिव्रताएँ पति की लंबी उम्र के लिए

    अच्छे घर-वर के लिए कुवाँरियाँ

    पूजती है तुम्हारे लिंग को

    दूध-दही-गुड़-फल-मेवा वग़ैरह

    अर्पित होता है तुम्हारे लिंग पर

    रोली, चंदन, महावर से

    आड़ी-तिरछी लकीरें काढ़कर,

    सजाया जाता है उसे

    फिर ढोक देकर बारम्बार

    गाती हैं आरती

    उच्चारती हैं एक सौ आठ नाम

    तुम्हारे लिंग को दूध से धोकर

    माथे पर लगाती हैं टीका

    जीभ पर रखकर

    बड़े स्वाद से स्वीकार करती हैं

    लिंग पर चढ़े हुए प्रसाद को

    वे नहीं जानतीं कि यह

    पार्वती की योनि में स्थित

    तुम्हारा लिंग है,

    वे इसे भगवान समझती हैं,

    अवतारी मानती हैं,

    तुम्हारा लिंग गर्व से इठलाता

    समाया रहता है पार्वती-योनि में,

    और उससे बहता रहता है

    दूध, दही और नैवेद्य...

    जिसे लाँघना निषेध है

    इसलिए वे औरतें

    करतीं हैं आधी परिक्रमा

    वे नहीं सोच पातीं

    कि यदि लिंग का अर्थ

    स्त्रीलिंग या पुल्लिंग दोनों है

    तो इसका नाम पार्वती-लिंग क्यों नहीं?

    और यदि लिंग केवल पुरुषांग है

    तो फिर इसे पार्वती-योनि भी

    क्यों कहा जाए?

    लिंगपूजकों ने

    चूँकि नहीं पढ़ा ‘कुमारसंभव’

    और पढ़ा तो ‘कामसूत्र’ भी नहीं होगा,

    सच जानते ही कितना हैं?

    हालाँकि पढ़े-लिखे हैं

    कुछ ने पढ़ी है केवल 'स्त्री-सुबोधिनी'

    वे अगर पढ़ते और जान पाते

    कि कैसे धर्म, समाज और सत्ता

    मिलकर दमन करते हैं योनि का

    अगर कहीं वेद-पुराण और इतिहास के

    महान मोटे ग्रंथों की सच्चाई!

    औरत समझ जाए

    तो फिर वह पूछ सकती है

    संभोग के इस शास्त्रीय प्रतीक के—

    स्त्री-पुरुष के समरस होने की मुद्रा के—

    दो नाम नहीं हो सकते थे क्या?

    वे पढ़ लेंगी

    तो निश्चित ही पूछेंगी,

    कि इस दृश्य को गढ़ने वाले

    कलाकारों की जीभ

    क्या पितृसमर्पित सम्राटों ने कटवा दी थी

    क्या बदले में भेंट कर दी गई थीं

    लाखों अशर्फ़ियाँ,

    कि गूँगे हो गए शिल्पकार

    और बता नहीं पाए

    कि संभोग के इस प्रतीक में

    एक और सहयोगी है

    जिसे पार्वती-योनि कहते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नेहा नरूका
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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