लोग कहते हैं

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नीलेश रघुवंशी

नीलेश रघुवंशी

लोग कहते हैं

नीलेश रघुवंशी

और अधिकनीलेश रघुवंशी

    शहर में प्रवेश कर लिया है कैमरे ने

    विदिशा का बोर्ड रेलवे स्टेशन और बेतवा नदी

    नदी में नहाते हुए लोग जस के तस रुक निहार रहे हैं कैमरे को

    बेतवा किनारे मटमैले पानी के संग सफ़ेद चमकते मंदिर

    रेंग रहे हैं सड़कों पर ट्रैक्टर-ट्रॉली साथ में मोटर साइकिलें भी

    ज़बरदस्त गहमागहमी है बस स्टैंड पर

    बिंब में गढ़ा जा रहा है समूचे शहर को

    ये सारे शॉट लिए जा रहे हैं कार से

    विदिशा ज़िले की समस्याओं पर आधारित वृत्तचित्र में

    हाय-हाय कर रहे हैं लोग

    थरथराती आवाज़ में बयान करते अपनी बदहाली

    कितने मासूम हैं लोग

    जितनी मारक उनकी बदहाली उतनी ही मासूम उनकी बयानी

    एक दूसरे को ठेलते हुए

    कोई बेतवा के पानी को लेकर रो रहा है तो कोई उद्योग-धंधों को

    कोई पानी बिजली सड़क और अतिक्रमण पर कर रहा है

    हाय-हाय मजूर मजूरी के लिए रो रहे हैं पढ़े-लिखे नौकरी के लिए

    अचानक ही पूरी भीड़ ने कैमरे और माइक को घेर लिया और चीख़ी

    पानी बिजली नहीं है भैया अब तो ऐसो लगत है

    हम औरें एक दूसरे के सिर फोड़ दें जा पानी बिजली के चक्कर में

    डाक्यूमेंट्री में तो जैसे जान गई

    इसी को लेकर कर रहा है कंपेयर पीस टू कैमरा

    ‘‘क्या सचमूच पानी लड़ाएगा एक दिन हम सबको

    वैसे कहा तो जा रहा है कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा’’

    बैकग्राउंड में बतवा मरगिल्ली गाय की तरह बह नहीं सुबक रही है

    एक विकलांग पर टिकी कैमरे की निगाह

    वह पास बहुत पास रहा है कैमरे में

    क्या कैमरा समूचे शहर को उसका प्रतीक बनाना चाहता है

    अरे रे बाबा उसी में डिज़ाल्व कर दिया बेतवा को

    क्या कहना क्या चाहते हो बेतवा नहीं खड़ी अब अपने पाँवों पर

    निम्न मध्यवर्गीय लोग हाथों में झोला लिए हुए

    बस स्टैंड जीर्ण-शीर्ण टूटी-फूटी बसें वैसे ही रुग्ण पशु

    बसों से टिके हाथ हिलाते लोग कुछ बस पर चढ़ते कुछ आते-जाते

    प्रतीक्षालय में है एक झुंड सबसे बेख़बर गोटियाँ खेलता

    ठसाठस भरी दुकानें सँकरी गलियाँ पहले तो कभी लगी नहीं इतनी सँकरी

    ये महिलाएँ आज भी इतनी सटी-सटी और कोने में दुबककर क्यों चलती हैं

    देखो तो सही सिर पर झोला धरे टकराने से बचतीं

    कैसी सहमी-सहमी-सी चली जा रही हैं

    उन्हीं की तरह सड़क पर उदास बैठी है गाय और उसके ऐन बग़ल में

    साइकिल वाला कैरियर पर रस्सी का झुंड दबा रहा है

    बैकग्राउंड में संगीत... बस स्टैंड पर है पूरा फ़ोकस

    यहाँ सिवाय सवालों के कुछ भी नहीं तिस पर

    सवालों की धार को कैमरे की कलाबाज़ियाँ कर रही हैं कुंद

    एक ने ताव में कह दिया...

    हर आठ दिन में माइक ले के खड़े हो जाते हो तुम लोग

    होत जात कुछ नहीं है हाँ नहीं तो

    और बात गई सीधे बिना किसी भूमिका के बेरोज़गारी पर

    कंपेयर कैमरे के संग पहुँच गया है चाह की दुकान पर

    चाय वाला भट्टी में चाय का हत्ता चलाते माइक को घूरते हुए

    क्या है? यहाँ कुछ नहीं है—है ही नहीं रोज़गार—है कहाँ?

    हो तो तुम बताओ?

    हूँ हूँ का? हर बात पे तुम लोग मुंडी हिला देते हो!

    अरे पूछने से पहले सोचा तो करों किससे क्या पूछ रहे हो?

    एक ही बात की रट लगाए हो घंटे भर से

    ग्राहकी करें कि तुमसे चोंच लड़ाएँ हमें और बेरोज़गार करते जाओ तुम

    जेई कसर और बची है

    मुँह बिचका रहा है ग़ुस्सेदार युवक रोज़गार के नाम पर

    उसके पीछे खड़ी भीड़ दाँत निपोरते मज़ाक़ बनाती समूचे दृश्य का

    बुला रहे हैं एक-दूसरे को इशारे से जैसे हो रहा हो बंदर का नाच

    पान वाला चूने-कत्थे से भरे कपड़े से हाथ पोंछते कह रहा है

    देखो अब हम चाहें तो झट से पान लगा दें और,

    चाहें तो घंटों खड़ा करें ग्राहक को भैया ये तो मन की बातें हैं

    सरकार से एक पान लगाने का कहोगे तो उसमें भी दस कमेटियाँ बिठा देगी

    मरते मर जाओगे तरस जाओगे लेकिन पान नहीं खा पाओगे तुम

    तो ऐसाई है अपने यहाँ पे

    प्रश्नकर्ता ने बाद भी इसके प्रश्न दाग़ दिया

    तो यहाँ पे कोई उद्योग नहीं है क्या?

    कैसी बात करते हो यार इतनी देर से तुम सुन का रहे हो एँ?

    मुँह नहीं दुखता तुम्हारा कमाल के पढ़े-लिखे आदमी हो तुम

    कमेंट्री चल रही है पर्यटन पर एकदम सरकारी तोते की तरह

    देखिए अब कैमरे की भरपूर कलाबाज़ियाँ पर्यटन-पर्यटन-पर्यटन

    उद्यगिरि की गुफाओं पर कैसा अच्छा स्टडी शॉट बनाया,

    एकदम स्टिल वाह क्या बात है

    साँची का स्तूप... पहली बार साँची जाना याद गया

    याद गया पहली-पहली बार घर से निकलना

    एक भी गोरी मेम नहीं आस-पास के लोगों से ही चल रहा है काम

    विदिशा ज़िले में पर्यटन की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं

    कह रहे हैं लोग अगर सही दिशा में कार्य हो जाए तो फिर

    टाइम लैप... ट्रैक शॉट में पेड़ पीछे छूट रहे हैं

    बहुत ही मोहक दृश्य देखते ही बनती है कैमरे की शेखी

    अब आई असल धड़कन स्वागतम् के बोर्ड के साथ

    कृषि ऊपज मंडी गंज बासौदा...

    घूम रहे कैमरे तुम पूरी मंडी में लेकिन जुटे हैं लोग अपने कामों में

    अरे गेहूँ के बोरों को दिखाया नहीं तुमने ठीक से

    देखो तो सही ज़रा पलटकर

    एक के ऊपर एक कैसे ठाठ से खड़े हैं वो

    उन्हीं की मंडी में उन्हीं से बेख़बर चले जा रहे हो तुम

    अब समझ आया तुम्हारी घटती दर्शक-संख्या का कारण

    ऐसे ही नहीं बढ़ जाती टी.आर.पी.

    देखो तो सही ट्राॅलियों की भीड़ में कैसे ठसक से खड़ी हैं बैलगाड़ियाँ

    उन औरतों को देखो कैसे रिदम से फटक रही हैं गेहूँ

    इन्हीं को तो कहते हैं फड़वालियाँ

    इतना भी नहीं पता और चले हो डाॅक्यूमेंट्री बनाने

    खींच रहे हैं एक साथ कितने हाथ अनाज से भरे ठेले को

    यह मंडी है बासौदा की गल्ला मंडी

    यहाँ सब कुछ बँटता है आपस में सिवाय व्यापारी की जेब के

    बता रहा है फड़ कितनी बेईमानी भरी है लोगों ने उसके भीतर

    कैसा ठगा-सा खड़ा है किसान

    अब समझ आया गाय की आँखों में क्यों भरा रहता है इतना पानी

    बोल रहे हैं किसान कँपकँपाती आवाज़ में

    अरे भैया हम किसानों की तो भौतई आफस है

    हर कोई लूटबे ही ठाड़ो है

    बनिया व्यापारी हम्माल हम तो सबसे परेशान हैं और जा धूरा से भी

    (वह धूल की ओर इशारा कर रहा है)

    हम ग़रीब किसान हैं हमारी कोई क्यों सुनेगा

    पीवे को पानी तक तो है नहीं और तुम शौचालय की बात करते हो

    अरे हम तो कहीं भी बैठ जात हैं और का का कहें

    तुम खुदई देखो फोटू ले लो जे देखो जे

    पत्थर में कैसी दरारें बनाए हैं जे औरें

    जे सब हम किसान की छाती पर मूँग दलत हैं मूँग

    सारी रात खटका में गुजारते हम औरें

    पलक झपकी नहीं कि भड़ैये दो-चार बोरा पार कर देएँ

    और जो रस्ता एक घंटा को है वा में हमें तीन-तीन घंटा लग रहे हैं

    हमरे बैलों के पाँव पिरा जात हैं मौं का फाड़ रहे हो

    वे का कोई जीवन नहीं हे

    तुम घंटा-भर से ट्रैक्टर की रट लगाए हो?

    अब मंडी अधिकारी ज़िलाधिकारी कलेक्टर डिप्टी कलेक्टर

    तहसीलदार की बाइट चल रही हैं...

    दृश्य में पीछे मुँह ताकते नज़र रहे हैं पटवारी और कोटवार

    हल्का-सा संगीत समापन का-सा एहसास

    अंत में चौराहे पर खड़े होकर कैमरे ने लपेट लिया पूरे शहर को

    कितना कुछ कहते हैं लोग जितना ज़्यादा कहते हैं लोग

    उतना ही ज़्यादा अनसुना करते हैं आप उनकी आवाज़ को

    लोगों ने अपनी कह सुनाई अब आप भी तो कुछ कहिए जनाब

    पानी-पानी-बिजली-बिजली

    सड़क-सड़क-रोज़गार-रोज़गार

    मंडी में किसान लूट-लूट-लूट

    यही है तस्वीर हर ज़िले की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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