नास्तिक हूँ मैं!

nastik hoon main!

एन.पी. सिंह

एन.पी. सिंह

नास्तिक हूँ मैं!

एन.पी. सिंह

और अधिकएन.पी. सिंह

    भूख से सिकुड़ती-सिमटती

    अँतड़ियों को जब देखता हूँ,

    पढ़ता हूँ पत्र-पत्रिकाओं में

    खाद्यान्नों के अभाव में

    दस्तक देती विकराल मौत के

    भयावह समाचार,

    तो याद आती है तुम्हारे

    यज्ञ की समिधा,

    देवताओं के चतुर्दिक बिखरे,

    पुजारी के पाँव से रौंदे

    अनगिनत लड्डुओं के ढेर।

    संसाधनों के अभाव से जूझते,

    व्याधि से तड़पते-मरते

    लघुमानवों के बिलखते परिजनों को

    जब देखता हूँ,

    तो दृश्य पटल पर कौंधती है

    उपासना स्थलों की रत्नजड़ित प्राचीरें,

    स्वर्ग-मुकुटों से सुसज्जित

    तुम्हारे ईश का प्रातिनिधिक स्वरूप।

    देखता हूँ खुले आकाश का वितान ओढ़े

    यायावर जीवन जीने को अभिशप्त,

    अवसादग्रस्त, असहाय वंचितों की

    जीर्ण-शीर्ण झोंपड़ियों को,

    तो खींचते हैं ध्यान,

    विशिष्ट पाषाणों से सुशोभित

    तुम्हारे उपास्य के गगनचुंबी प्रासाद।

    कुपोषित नवजात शिशुओं को

    कृशगात माँ के रुग्ण स्तनों को

    नोचते-बिलखते जब देखता हूँ,

    तो उभरता है दृश्य

    हवा को शुद्ध करता यज्ञों का घृत-धूम

    और शिवलिंग को नहलाता

    दूध से भरा भारी कुंभ।

    ठंड से बिलखते-मरते

    जन-जन को देखता हूँ,

    जब देखता हूँ

    फ़ुटपाथों से

    लाज को ढकने का

    असफल प्रयास करती अबला को,

    तो दिखती हैं

    तुम्हारे पीरों की मज़ारों पर

    बिछती परत-दर-परत चादरें।

    तुम देवियों को ख़ुश

    करने के लिए पशु-वध

    तो करते आए हो,

    पर नर-वध का यह

    अनोखा तरीक़ाभी अभिनंदनीय है!

    तुम ख़ून इसलिए चढ़ाते आए हो

    कि संकेत दे सको,

    जब ‘महाशक्ति’ ‘देवी’ ‘पैग़म्बर’

    ख़ून पीना या देखना

    पसंद करते हैं,

    तो तुम्हें अपना ख़ून

    उपलब्ध कराना ही होगा

    शक्ति के वर्तमान अवतारों को।

    तुम चढ़ावे चढ़ाते रहे तो

    देवता को,

    पर उसे खाया सदैव

    कुत्तों, कौओं और चील्हों ने

    मैं नहीं कहता इन जीवों

    को खाने का हक़ नहीं,

    पर आदमी की क़ीमत पर नहीं,

    आदमियत की लाश पर नहीं।

    मैं जानता हूँ तुम

    लांछित करोगे मुझे

    नास्तिक कहकर,

    पर मैं

    तुम्हारी छद्म आस्तिकता को नकारता हूँ,

    जो ऐसे आराध्य का सृजन करे

    कि मृत्यु-पश्चात् तो मोक्ष दे, पर

    जीने के लिए रोटी नहीं,

    ओढ़ने को वस्त्र नहीं,

    पनपने को समानता नहीं।

    नकारता हूँ विषमता के जनक

    तुम्हारे द्वारा गढ़े गए

    ईश्वर के इस साज़िशी स्वरूप को,

    हाँ, नकारता हूँ मैं!

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द! कुछ कहे-अनकहे से... (पृष्ठ 66)
    • रचनाकार : एन.पी. सिंह
    • प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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