नर्तकी

nartki

महेश आलोक

महेश आलोक

नर्तकी

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

     

    किसी गुरु से नहीं सीखी उसने नृत्य-कला

    जब वह नाचती है
    भरतनाट्यम् और कथक और कुचिपुड़ी
    और नौटंकी तक की सभी शैलियाँ
    झाँकने लगती हैं
    उसके प्रदर्शन में

    गाँव के बच्चे सीटी बजाते हैं
    और दबंग करता है नोटों की बारिश

    गहरे लिपिस्टिक में रँगे उसके होंठ
    नगाड़े और तबले की थाप पर बुदबुदाते हैं कोई पुराना गीत
    छोटे-बड़े हर टुकड़े और अंतराल पर
    निकल ही जाती है
    सिसकारी

    नर्तकी जानती है सिसकारी और नोटों को रखने की असली जगह
    जानती है अधखुले स्तनों की क़ीमत और अपनी बेटी की घृणा
    साँप और नेवले की इच्छा और भूख में नृत्य करते हुए
    अपने पेट पर रेंगते कीड़े को
    पहचानती है वह

    रक्त की पीड़ा को बोलों और असहज मत्राओं में विकसित करती नर्तकी
    घुँघरू की आवाज़ में बच्चे को पिलाती है दूध
    जो रोता रहता है कई परदे के पीछे अपने पिता की गोद में 

    अपनी आत्मा में तांडव करते हुए भी
    वह आ ही जाती है अक्सर
    सम पर

    शास्त्रीय नृत्य में दक्ष नहीं है नर्तकी

    लेकिन जब वह 'कलहांतरिता'* की तरह कर रही थी नृत्य
    चंद्रमा ने तय कर लिया था
    वह निगल जाएगा सूर्य को 
    ______
    *कलहांतरिता (प्रणय कलह में रत नायिका)। शास्त्रीय नृत्य में अवस्था के विचार से नायिका के आठ भेदों में से एक।

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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