नहीं है जो चाहिए

nahin hai jo chahiye

सुघोष मिश्र

सुघोष मिश्र

नहीं है जो चाहिए

सुघोष मिश्र

और अधिकसुघोष मिश्र

    हवा के स्तनों से तुहिन झर रहा है

    आकाश का हृदय भीग रहा है

    जेबकतरे दु:खों ने

    भोले सुखों की गठरी में

    चीरा लगा दिया है

    अविरत उपेक्षाओं ने

    संकोची आत्माओं को

    जकड़ लिया है

    अजन्मे फूल व्याकुल हैं

    उदास चिड़िया स्वप्न में

    तड़फड़ा रही है

    नींद एक निष्प्राण धुंध में

    खो गई है

    हर साँस

    एक चौकन्नी जाग है

    सियारों का झुंड

    वर्षों से घात लगाए दौड़ रहा है

    और मैं निर्भय हूँ

    जंगल में शेर की तरह

    मायावी मकड़ियाँ सत्याग्रही तितलियों को

    अहिंसक हत्या का अभ्यास करा रही हैं

    आध्यात्मिक केकड़े भौतिकवादी बगुलों को

    ब्रह्म-जीव का सरस भेद बता रहे हैं

    रक्तसरोवर शुभ्र कुमुदिनी खिली हुई है

    निविड तमस में दिन की आभा मिली हुई है

    कुछ कमीनों के कारण

    कुछ शहरों को छोड़ दिया मैंने

    पर यह धरती तो नहीं छोड़ दूँगा

    जो मेरी सच्ची परछाईं है

    उनका झूठा शोर थमेगा आइने में चेहरों से

    यहीं लडूँगा यहीं मरूँगा प्यार करूँगा अपनों से

    सूखी हुई नदी की देह पर

    खरोंचों के निशान हैं

    और मैं डूब रहा हूँ

    टूटी हुई नाव की तरह

    मुझे लापरवाह साँस चाहिए

    नींद की राह बताने वाला राग चाहिए

    आज़ाद चिड़िया वाला स्वप्न चाहिए

    गाती हुई नदी और

    सुनती हुई नाव चाहिए

    कोमलता और करुणा के लिए

    दृढ़ अनंत आधार चाहिए

    ठिठुरती हुई रूहों के लिए

    थोड़ी-थोड़ी आग चाहिए

    मैंने पर्याप्त फूल खिला लिए हैं

    मुझे तुम्हारा हाथ चाहिए

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुघोष मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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