माधवी

madhawi

कुलदीप कुमार

और अधिककुलदीप कुमार

    स्वयंवर के पाखंड को तोड़कर

    अंत में मैंने

    स्वयं का ही वरण किया

    और तब मुझे लगा

    कि

    दूसरों की तरह ही

    मैं भी जीवित हूँ

    स्वयंवर छोड़कर

    मैं चल पड़ी हूँ अनजान-अबूझ पथ पर

    पहली बार मुझे

    मुक्त पवन के झकोरे लग रहे हैं

    रोम-रोम में पुलक है

    मैं भी आज एक स्वत्वशालिनी

    व्यक्ति हूँ

    मात्र

    देवों के भी स्वप्नों पर झपट्टा मारने वाली

    कामिनी

    भोग्या स्त्री नहीं

    वरना

    मैं तो उसी दिन पाषाणवत् हो गई थी

    जब पिता ययाति ने

    मुझे गालव को सौंप कर कहा था :

    ‘मेरी पुत्री अनिंद्य सुंदरी है

    इसे कोई भी राजा अपने पास रखने को तैयार हो जाएगा

    इसका शुल्क प्राप्त कर

    तुम गुरु-दक्षिणा चुकाओ’

    और इस तरह

    मुझे बलि किया गया

    पुरुषों की प्रतिज्ञा के यूप पर

    मेरे अपने ही पिता ने

    एक प्रतापी राजा ने

    अपना वचन रखने के लिए

    मुझे वेश्या बना डाला

    जिसे कोई भी पुरुष शुल्क देकर

    भोग सकता था

    मैंने देखा

    गुरु-शिष्य परंपरा का

    असली घिनौना चेहरा

    जब अंत में

    गालव मुझे

    अपने गुरु विश्वामित्र के पास ले गया

    क्योंकि अब भी दो सौ श्यामकर्णी अश्व कम पड़ रहे थे

    आज भी भूली नहीं हूँ

    उस ऋषि कहे जाने वाले वृद्ध की कामुक दृष्टि

    जब उसने गालव से कहा :

    ‘ऐसी सुंदरी को तुम पहले ही मेरे पास ले आते

    तो मैं तुम्हारी पूरी गुरु-दक्षिणा चुकी हुई मान लेता’

    इसके पहले मुझसे

    हयर्श्व, दिवोदास और उशीनर

    इन तीन राजाओं ने दो-दो सौ श्यामकर्णी अश्व का शुल्क

    चुकाकर

    पुत्र उत्पन्न किए

    और यही

    विश्वामित्र ने भी किया

    इस सबके बाद भी

    मेरे पिता मेरा स्वयंवर रचाने का ढोंग और दुस्साहस करेंगे

    मुझे विश्वास नहीं था

    अपनी झूठी शान के लिए जीने वाले

    और अन्य सभी की उसके लिए बलि देने वाले

    मेरे प्रतापी पिता ने

    वह भी किया

    पर्वत जैसे शरीर

    और शिला जैसे हृदय को ढोने वाली मैं

    कैसे किसी पुरुष की आँखों में आँखें डाल कर

    उसकी ग्रीवा में वरमाला डाल सकती थी?

    यदि डाल भी देती

    तो क्या अपने आपसे कभी

    आँखें मिला सकती थी?

    ऐसे जीवन के बाद

    क्या किसी को भी दे सकती थी मैं

    एक निष्ठावान पत्नी का प्यार?

    इसलिए मैंने तपोवन को ही

    अपना वर चुना

    अब मेरे सामने है

    एकाकी पथ

    एक अंतहीन यात्रा

    एक गरिमापूरित जीवन

    जहाँ केवल मैं हूँ

    और मेरा स्वत्व है

    इन पुरुषों के पाखंड की यहाँ

    छाया भी नहीं

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुलदीप कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए