लोकतंत्र में लोक कलाकार

loktantr mein lok kalakar

जितेंद्र श्रीवास्तव

जितेंद्र श्रीवास्तव

लोकतंत्र में लोक कलाकार

जितेंद्र श्रीवास्तव

और अधिकजितेंद्र श्रीवास्तव

    रेत की गोद में

    जब डूबता है सूर्य

    बहुत कुछ डूबता है लोक कलाकारों के मन में

    जबकि उन्हीं क्षणों में

    देश-विदेश से आए सैलानी

    कैमरों में उतार रहे होते हैं

    डूबते सूर्य का सौंदर्य

    फील्ड वर्क के लिए आए समाजशास्त्री

    बनाते हैं एक नया रसायन

    शोध और तफ़रीह का

    वे अलग-अलग कोणों से खींचते हैं

    लोक कलाकारों की तस्वीरें

    उनसे पूछते हैं उनके वाद्ययंत्रों के बारे में

    और यह भी कि

    कितनी पीढ़ियों से चला रहा है

    यह उनके वंश में

    वे नहीं पूछते

    उनके बच्चों की शिक्षा, उनके घर और उनकी ग़रीबी के बारे] में

    लेकिन वे जानते हैं

    लोक कलाकारों की तस्वीरें और उनकी दरिद्रता

    ख़ूब यश दिलाएँगी उन्हें और उनकी पुस्तक को

    एक समाजशास्त्री ने कल खींची थी एक तस्वीर

    जिसमें नाचती हुई कलाकार

    नाचते हुए दूध भी पिला रही थी बच्चे को

    वह बहुत ख़ुश था इस तस्वीर को पाकर

    उसने दोस्तों से कहा

    कभी-कभी मिलती हैं ऐसी तस्वीरें

    इन्हें हम बेच सकते हैं

    किसी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया समूह को

    अब ख़ुशी-ख़ुशी लौटेगा वह अपने शहर

    लिखेगा एक शोध-पत्र

    छपाएगा अपनी किताब

    और दो-चार वर्षों के भीतर ही

    बन जाएगा विशेषज्ञ

    आने वाले दिनों में

    वही बोलेगा इन लोक कलाकारों की ओर से

    इनके विषय में वही राय देगा समाचार चैनलों पर

    वह कभी नहीं चाहेगा

    कि ये लोक कलाकार ख़ुद बोलें

    कहें अपनी बात

    वह हमेशा चलाएगा मीठी छुरी

    वह लोक कलाओं और कलाकारों के विषय में

    बहुत कुछ बताएगा

    कुछ सच्ची कुछ झूठी

    मुँह बना-बनाकर

    लेकिन एक छोटी-सी बात बताने से

    कतराता रहेगा उम्र भर

    उसके लिए नहीं करेगा तनिक भी कोशिश

    वह नहीं चाहेगा कोई और भी कहे

    कि जब तक लोक कलाकार नहीं बोलेंगे

    अपनी आवाज़ में अपना सच

    नहीं लड़ेंगे अपने हिस्से की लड़ाई

    तब तक लोकतंत्र

    उनके लिए महज़ एक शब्द होगा

    वह हलका होगा उनके लिए

    अन्न, पानी और हवा जैसे शब्दों से

    जबकि उनके लिए

    लोकतंत्र का अर्थ होना चाहिए ऑक्सीजन

    उन्हें खींचना ही चाहिए लोकतंत्र की ऑक्सीजन की तरह

    अपने फेफड़ों के भीतर

    ताकि उनके लिए दुनिया बदले सिर्फ़ ऊपर ही ऊपर

    लोक कलाकारों की जगह

    रेत के टीलों पर नहीं

    देश की आत्मा में होनी चाहिए

    अब वह समय गया है

    जब संविधान में संशोधन होना चाहिए

    और उसका पालन भी सख़्ती से

    कि जब भी कोई जाए किसी लोक कलाकार के पास

    तो झुके उसी विनम्रता से

    जैसे लोग झुकते हैं इबादतगाहों में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जितेंद्र श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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