मृत्यु और सृजन के बीच एक प्रेम-कथा

mirtyu aur srijan ke beech ek prem katha

विहाग वैभव

विहाग वैभव

मृत्यु और सृजन के बीच एक प्रेम-कथा

विहाग वैभव

और अधिकविहाग वैभव

    रे रंगरेजिन रे

    छू ले कर दे चंदन ये तन

    सुन ले कर दे रूई-सा मन

    रे रंगरेजिन रे

    कहते हैं जब वह सफ़ेद हिरन

    उस गुलाबी हिरनी को सौंपकर अपना घुटना

    आवाज़ में आँखों की पूरी आर्द्रता घोलकर

    गाता था यह गीत तो

    राजा का सिंहासन थरथराने लगता था

    कानों में रेंगने लगते थे मगरगोह

    अँगुलियाँ गलकर गिरने लगती थीं मोम-सी

    बदन को चाटने लगते थे काले साँप

    आख़िर एक दिन राजा के सैनिक

    भालों और बर्छियों पर टाँगकर उठा लाए हिरनी को

    हिरनी की आत्मा भूनकर खा गए मंत्रीगण

    और हिरन को डुबोकर मारा जंगल की नदी में

    सुनने वाले कहते हैं

    साँस की आख़िरी छोर तक गाया था हिरन वह गीत

    रे रंगरेजिन रे

    छू...चंदन...तन

    सुन ले...रूई...मन

    हिरन की देह को तो खा गईं स्मृति की मछलियाँ

    पर उसका हृदय पानी में घुल गया

    नदी का पूरा पानी हो गया हल्का गुलाबी

    नदी का पानी जंगल के और जन पीते रहे कुछ दिन

    पर अचानक यूँ ही एक रोज़

    एक ख़रगोश ने गाया एक बाघ के लिए वह गीत

    फिर तो, भेड़िए मेमनों के लिए

    मोर साँपों के लिए

    शेर जिराफों के लिए

    सब कुछ भूलकर गाने लगे वह गीत

    रे रंगरेजिन रे...

    जैसे-जैसे गीत के स्वर जंगल के बाहर आए

    राजा की साँसे फूलीं और वह मर गया

    सिंहासन तड़तड़ाकर टूट गया खंड कई

    क़िले की मेहराबें बालू की तरह ढह गईं

    दफ़्न हो गए सभी सिपहसालार

    मरघट हो गया पूरा का पूरा राज्य

    सुनने में आता है कि उस तारीख़

    देर रात तक जंगल से आती रही एक गीली आवाज़

    जैसे अपने पूरे वजूद को रोक कर कंठ अपने

    जीभ पर रखकर प्रेमिका की लाश

    भरभराए स्वरों में फफकते हुए

    गाता रहा कोई विरही अगले भोर तक

    रे रंगरेजिन रे

    छू ले कर दे चंदन ये तन

    सुन ले कर दे रूई-सा मन

    रे रंगरेजिन रे...

    स्रोत :
    • रचनाकार : विहाग वैभव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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